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12 जून, 2021

बसेड़ा की डायरी : किसी की छान पर आलड़ी, तरोई या गिलकी लगेंगी।

बसेड़ा की डायरी, 12 जून 2021

गाँव के पढ़े-लिखे, कम-पढ़े और बिन-पढ़े सभी कहते हैं कि स्कूल में बच्चे नहीं तो फिर माड़साब के लिए क्या काम रहता होगा? मतलब ढेर-ढेर फुरसत और आराम-परस्ती। टांग पर टांग और हाथों में अखबार। पेड़ की छाया और कुर्सी का आसरा। घड़ीभर की नींद और एक सुस्त दोपहर। अमूमन अध्यापकों को ऐसी प्रतिक्रिया सुनकर आश्चर्य और पीड़ा होती है। बसेड़ा की बड़ी स्कूल में हम ग्यारह साथी हैं। बड़े सर छगन जी पाटीदार दिनभर मोनिटरिंग के फोन और वाट्स एप सुनते-पढ़ते और नित-नए आदेश जारी करने को बाध्य हैं। झपकी लेने का समय कहाँ? दूजा मैं ग्राम पंचायत में टीकाकरण कैम्पों का इंचार्ज। हिंदी से दूर होते हुए कार्यालयी कामकाज में महारथ हासिल करता हुआ व्याख्याता। कोविशिल्ड वेक्सिन के पंजीयन, शिविर समन्वयन, व्यवस्था और रिपोर्टिंग। एक अनुमान के अनुसार सालभर यही चलेगा। फर्नीचर सेट-अप से लेकर लेपटॉप सेटिंग तक। माल-ढुलाई से लेकर लोगों को समझाई तक। आधार फीडिंग से लेकर आँकड़े निकलाई तक।

तीसरे स्थान पर भैरू लाल जी मीणा आते हैं जो संस्थापन देखते हैं। चुनाव की डाक और कार्मिकों के टीकाकरण की डाक बनाते मिलेंगे या फिर साथियों की सर्विस बुक में पी.एल. जोड़ते, घटाते या फिर मेडिकल अवकाश संधारित करते हुए मिल जाएँगे। घर से तीन सौ किलोमीटर दूर नौकरी के नौ साल। मीणा जी बसेड़ा में ही रहते हैं तो गाँव को शुरू से जानते हैं। कुछ न हुआ तो सैलेरी बिल बनाते या भुगतान किए गए वेतन का रजिस्टर मेन्टेन करते मिलेंगे। काम है कि ख़त्म ही नहीं होता। सच यही है कि हम सभी विषय के अलावा भी फुल टाइम बाबूगिरी करने लगे हैं।

पवन जी शर्मा परीक्षा इंचार्ज हैं। सत्रांक के दस्तावेज जुटा रहे हैं। चिंता उनके आसपास नहीं फटक सकती। बेख़ौफ़ शब्द उन पर एकदम जचता है। उनके पास बैठकर लगता है जीवन की रफ़्तार बहुत तेज़ नहीं होनी थी। आजकल वे हाल ही में थोक में पास हुए बच्चों को रजिस्टर में क्रमोन्नत कर रहे हैं। क्रमोन्नति के सर्टिफिकेट तैयार करने में व्यस्त हैं। काम है कि समाप्त ही नहीं होता। गाँव भले न्यारे हों मगर सभी स्कूलों की यही कथा है। यही व्यथा है। सत्रांक बोर्ड की साईट पर भरने हैं। चार अध्यापकों को उपखंड अधिकारी कार्यालय द्वारा अधिगृहित कर रखा है। ड्यूटी आदेश में उनके लिए वार्ड में कोरोना निगरानी, सर्वे, टीकाकरण, मेडिकल किट वितरण आदि सेवाएं नत्थी हैं। पहले और भी ज्यादा कार्मिक सर्वे में जोड़ रखे थे। अब कुछ को आराम है।

छुट्टन लाल जी मीणा वार्ड में प्रभारी वाले दायित्व के अलावा विद्यालय की खराब ट्यूबवेल और पौधों की बची हुई हरियाली को सहेजने में व्यस्त हैं। सरकारी अध्यापक दायित्व के अलावा दायित्व निभाने के आदी हो चले हैं। क्या-क्या करें। चोक ही नहीं पड़ता है। आज निबटाओ सवेरे नयी सूची तैयार। स्कूल की प्रबंधन समिति के सचिव होने के कारण उनकी अन्य व्यस्तताएं भी हैं। सामानों की खरीद, बिल भुगतान, चेकबुक और पासबुक संधारण। इसी सप्ताह कुर्सियाँ, लोहे का बक्सा, टेबल का काँच, प्रिंसिपल रूम का फ़र्श खरीदना तय हुआ है। सालाना स्टेशनरी की लम्बी लिस्ट अलग से। आप कहते हैं काम नहीं हैं।

कई बारी एक कार्मिक सहजता में ही दूजे की मदद में जुट जाता कि खुद का काम वहीं का वहीं अटक जाता है। परवाह कौन करे?, यही मस्ती है जो जीवन में आनंद सींचती है। वरना मृत्यु सरीखी ऊब तो गले लगाने के लिए तत्पर ही है। एक अमर जी शर्मा हैं। कैशबुक का समस्त जिम्मा ओढ़कर चलते हैं। अचानक आई किसी भी डाक के तकनिकी पक्ष को लेकर सभी का साथ देते हैं। कंप्यूटर पर टकाटक आदमी हैं। सहज और दिल फ़रियाद। काम सारे आते हैं। साथी कार्मिक अमर जी की बातों के दास हो गए हैं। स्वाभाविक चुहल का उनका अंदाज़ अच्छा है। भीतर से कवि-ह्रदय हैं। खुद का काम निबटा नहीं कि दूजे के साथ हल्ले लग जाते हैं। मदद करना उनकी आदत में है।

बिंदु मैडम बसेड़ा की ही बड़ी स्कूल में टीकाकरण कैम्प में पंजीयन देखती हैं। स्टाफ टी-क्लब की जिम्मेदारी है। आज से शुरू हुए स्माइल प्रोजेक्ट की ओवर-ऑल प्रभारी हैं। दिनभर में कुछ न कुछ काम में लगी ही रहती हैं। मन अच्छा हो या नहीं प्रसन्न दिखती हैं। सरकारी अध्यापकों को ऊपर से खुश दिखने का लंबा अभ्यास हो गया है। बिंदु मैडम के लिए भारी-भरकम स्कॉलर रजिस्टर में सालाना इन्द्राज और प्रवेश की लगभग तैयारी हैं बस। किसी एक वार्ड के प्रभार से अभी-अभी मुक्त हुए नंदकिशोर जी दुबे इन दिनों आयी लगभग दो सौ पुस्तकों को स्टॉक-रजिस्टर में चढ़ा रहे हैं। टीकाकरण वाले दिन लाभार्थियों की लाइन बनाना या उन्हें टोकन-पर्ची देने में भी दुबे जी सेवाएं देते ही हैं। दुबे जी उनसठ के हो गए हैं। आने वाली जनवरी उनके लिए नौकरी के लिहाज से अंतिम महीना है। उनके काम और बातों के अंदाज़ में रिटायर होने का भाव कहीं नज़र नहीं आता। एक जगदीश जी सेंगर हैं। आजकल केसुन्दा के पास राजस्थान-मध्यप्रदेश बोर्डर पर तैनात हैं। सेंगर साहेब भी सतावन से अठावन में प्रवेश कर होंगे। नाके पर स्थापित चौकी पर आठ घंटे ड्यूटी देते हैं। बताइएगा आराम कहाँ हैं? फुरसत किस चिड़िया का नाम है? बीपी और हार्ट पेशेंट। थैली भरकर गोलियाँ-कैप्सूल लाते और खाते हैं। शरीर ठीक नहीं रहने पर भी मन चंगा रखने की कला उनके पास है। आजकल उनकी उम्रदराज़ माँ की तबियत से थोड़ा दुखी रहते हैं। अध्यापक कितना भी कर लें परिवार का सुख-दुःख छिपा नहीं सकते।

बसेड़ा में ही सत्रह-अठारह बरस से अध्यापकी कर रहे दो कार्मिक और हैं। एक कैलाश जी माली हैं जो लगातार कोरोना ड्यूटी कर रहे हैं। बिना रत्तीभर टेंशन के। काम के लिए सहजता में हामी भरने और खुशी-खुशी पूरा करने का हुनर उनमें है। एक पग बसेड़ा कभी एक पग सादड़ी। हमारे लिए सादड़ी का मतलब छोटी-सादड़ी ही होता है। याद आया तो आपको भी बता दूँ गाँव की बोली में बसेड़ा को ‘वेड़ा’ और सादड़ी को ‘हादड़ी’ कहते हैं। कैलाश जी की ड्यूटी कहीं भी हो वक़्त-ज़रूरत के कई काम वे बसेड़ा आकर निबटा जाते हैं। ‘मिड-डे मील’ का ‘कोम्बो-पैक’ वितरण हो या राशन सामग्री की साफ़-सफ़ाई। स्कूल की चिंता अपने घर की तरह करते हैं। कमरों के ताले-कूँची से लेकर पानी के मटकों तक। आलमारी के लॉक से लेकर सील-ठप्पे तक। बारामदे की सफ़ाई से लेकर फाटक के नकुचे अड़काने तक। किसी काम की मनाही नहीं। सादड़ी की कोई भी डाक हो। लानी या फिर ले जानी। कैलाश जी जिंदाबाद। आहाते में कुर्सी ऐसी जगह लगाकर काम करते हैं ताकि पूरे चौबारे में नज़र रहती है। देसी ठाठ और लोक का असली आनंद वे ही उठाते हैं। टिफिन ऐसे खोलते और जीमते हैं जैसे कमठाने पर डबुसा खुला हो। सहज और अपने में रमे रहने वाले। चलाकर किसी को छेड़ते नहीं। चूंटिया भरने वाले को नानी याद दिला देते हैं।

अंत में मथुरा लाल जी रेगर। इनकी कथा अनंत है। हमेशा व्यस्त और ओवरलोडेड अनुभव होते हैं। या तो काम कर रहे होते हैं या फिर काम की चिंता से परेशान। वार्ड में रोजाना जाते हैं। कागज़ रंगते रहते हैं। वाट्स एप आजकल सीख रहे हैं। उनके प्रश्नों और पूरक प्रश्नों से जो बचा रहता है वह अमरता को प्राप्त कर जाता है। सभी का काम ख़त्म हो जाता है मगर मथुरा लाल जी का नहीं होता। स्कूल समय के बाद भी फोन मिलाकर डाकें बनाते-बिगाड़ते रहते हैं। कल से क़िताबें लेंगे और नयी देंगे। भण्डार का चार्ज अलग से है। टी-क्लब उन्हीं के कमरे में सेट किया हुआ है। इतने सब पर भी वे सहजता से पेश आते हैं। मथुरा लाल जी होना आसान नहीं है। कोरोना के वार्डवार सर्वे में लगातार ड्यूटी बदलने से बदले जा रहे वार्ड को लेकर अक्सर परेशान रहते हैं। एक वार्ड की समझ बनने लगे नहीं कि वार्ड बदल जाता।

यही स्टाफ है हमारा। भरापूरा। सभी व्यस्त हैं। कोई फ्री नहीं मिलेगा। अध्यापकी में अब आराम और फुरसत एक भ्रम है। ऊपरतड़ी आदेशों की पालना में गधा-हमाली जारी है। सहायक कर्मचारियों के तमाम काम अध्यापकों को सौंप दिए गए हैं। एक कमरे से निकलो दूजे में घूस जाओ। लघु-शंका करने निकलो और भूल ही जाओ कि कुछ देर पहले क्या काम चल रहा था। एक की मजाक दूजे को ऑक्सिजन देती है वरना कभी का रामनाम सत्य हो जाता। घर-गिरस्ती की चिंताओं पर स्कूल वाले रफ्फु फेर देते हैं। स्कूल की कई चिंताएं घर जाकर आराम भोगती हैं। कुछ साथी व्यंग्य करते हैं कुछ व्यंग्य झेलते हैं। ऐसे ही कट रही है। कोई किसी का बुरा नहीं मानता। यही हमारे पौधों और अध्यापकों के हरेपन का आधार है। काम करती बेर और बातों का रसपान करते वक़्त हम घड़ी नहीं देखते। स्कूल में सहायक कुछ नहीं होता। अध्यापक में ही ईश्वरीय शक्ति निहित मान ली गयी है। सभी प्रभारी अपने-अपने प्रभार वाले कक्षों के झाड़-पौंछ के लिए खुद ही खप रहे हैं। अपना कमरा, अपना ताला। अपनी खिड़कियाँ अपना पंखा। वापरो, ठीक कराओ, खोलो और बंद करो। एकदम आत्मनिर्भर। अपने कमरे के चूहों को लेकर खुद की योजना बनाएँ और भगाएं। स्कूल जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है कमरों की पाँती होने लगती है और जिम्मेदारी का बँटवारा।

स्कूल खुल गए हैं तो अब डायरी सप्ताह में एकाध बार ही संभव होगी। रेगुलर सौ किलोमीटर बाइक चलाना दुष्कर कार्य है। रीड की हड्डी में दर्द होने लगा है। राजस्थान रोडवेज बसें अपर्याप्त हैं। निजी बसों की हड़ताल जारी है। आम-आदमी का कचूमर निकल रहा है। पेट्रोल सौ पार जा पहुँचा। पाँच सौ की नोट में मात्र तीन दिन की यात्रा। आज आई.सी.टी. लैब के झाले साफ़ किए। चार विद्यार्थी आ गए तो बड़ी मदद हो गयी। पंकज मीणा, महेश टेलर, कीर्तन और अजय। कई माउस के तार चूहे कुतर गए। सारी केबलें खोलकर पेटी में भरी। चूहों की दवाई का इंतज़ाम किया। लैब को बैठने लायक बनाया। स्कूल की ईमारत पुरानी है। कमरे नहीं बस जुगाड़ है। बच्चों के बिना लैब एक साल से सूनापन भुगत रही है। तीनों लैब सुस्त है। कंप्यूटर-विज्ञान-गणित। नया का नया ए.बी.एल. कक्ष सुस्त पड़ा है। स्कूल का प्रिंटर खराब है। आज हे डेढ़ सौ प्रिंट राजीव गाँधी सेवा केंद्र में जाकर निकलवाए। पंचायत सहायक विनोद जी आंजना ऐसे आड़े वक़्त में काम आ जाते हैं। सातेक दिन के लिए ग्राम पंचायत से एक अतरिक्त प्रिंटर उठा लाए। फिलहाल साता हुई।

दो दिन से घर के गमलों में मोगरा और गुलाब आने लगे हैं। पढ़ने की टेबल पर रोजाना कुछ फूल-पत्तियों से गुलदस्ता बनाता हूँ तो ऊर्जा मिलती है। डाक से मंगवाई कुछ क़िताबें इसी सप्ताह आई। अम्बिकादत्त जी की ‘रमतेराम की डायरी’, डॉ. भोलानाथ तिवारी की ‘हिंदी भाषा’, राहुल जी ‘घुमक्कड़ शास्त्र’, राकेश तिवारी जी की ‘सफ़र एक डोंगी में डगमग’, शिवदत्त ज्ञानी जी की ‘भारतीय संस्कृति’ और बद्रीनारायण जी की ‘लोक संस्कृति और इतिहास’। कुछ प्रवीण ने अपने शोध कार्य के लिए चाही है तो वह ले जाएगा। दो मेरी पसंद की है तो पहले उन्हें पढूंगा। एक डायरी विधा और दूजी भाषा-विषयक। ‘बसेड़ा की डायरी’ के कई पाठक साथियों की ज़बान पर लिखने-बोलने में बीते दिनों की डायरी के शब्द वैसे के वैसे ही अनुभव होने लगे हैं। उनकी बोलचाल और रचाव में डायरी का असर दिखने लगा है। मतलब सृजन की बेलड़ी गति कर रही है। जल्दी ही कहीं किसी की छान पर आलड़ी, तरोई या गिलकी लगेंगी।

डॉ. माणिक
(बसेड़ा वाले हिन्दी के माड़साब)

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