प्रकाशन : मधुमती, मंतव्य, कृति ओर, परिकथा, वंचित जनता, कौशिकी, संवदीया, रेतपथ और उम्मीद पत्रिका सहित विधान केसरी जैसे पत्र में कविताएँ प्रकाशित। कई आलेख छिटपुट जगह प्रकाशित। माणिकनामा के नाम से ब्लॉग लेखन। अब तक कोई किताब नहीं।
सामाजिक-सांस्कृतिक मंचों की शुरुआत / संयोजन / भागीदारी : आरोहण, चित्तौड़गढ़ फ़िल्म सोसायटी, चित्तौड़गढ़ आर्ट फेस्टिवल, आपसदारी, अपनी माटी ई-पत्रिका, स्पिक मैके चित्तौड़गढ़,बसेड़ा सन्डे लाइब्रेरी,सामरी की लाइब्रेरी
प्रतिभागिता
- 27 अक्टूबर 2018 ऑन हाट इंटरनेशनल कोंफ्रेंस बैंगलोर
- 3-4 फरवरी 2019 प्रथम दलित लिट्रेचर फेस्टिवल,किरोड़ीमल कॉलेज,दिल्ली
- 10 फरवरी 2019 निराला केन्द्रित सेमिनार,आर एन टी कॉलेज कपासन
- 8 मार्च 2019 'फ़िल्म का अध्यापन में एक प्रविधि के रूप में इस्तेमाल' विषयक राष्ट्रीय कार्यशाला में पैनलिस्ट,डिपार्टमेंट ऑफ़ एज्युकेशन,यूनिवर्सिटी ऑफ़ दिल्ली
- 20-21 सितम्बर, 2019 को ‘Embracing The Others : Rediscovering Mahtma Gandhi and The Power of Non-Violence’ विषयक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी माणिक्य लाल वर्मा राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय भीलवाड़ा
- 23-24 जनवरी, 2020 को ‘साहित्य एवं पत्रकारिता के सम्बन्ध : अतीत और वर्तमान’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी में विजयसिंह पथिक श्रमजीवी महाविद्यालय अजमेर
- 27 सितम्बर 2024 बी.एन. विश्वविद्यालय उदयपुर
- 30 सितम्बर 2024, विश्व अनुवाद दिवस संगोष्ठी, अनुवाद विभाग, जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
स्पिक मैके इंटरनेशनल कन्वेंशन में हिस्सेदारी : आईआईटी कानपुर, आईआईटी मुम्बई, आईआईटी दिल्ली, आईआईटी खड़गपुर, आईआईटी चेन्नई, आईआईएम कोलकाता, सनबीम स्कूल बनारस, जम्मू यूनिवर्सिटी जम्मू, कोहिमा यूनिवर्सिटी कोहिमा, मणिपाल यूनिवर्सिटी मणिपाल, एनआईटी सुरतकल, सुरेश ज्ञान विहार यूनिवर्सिटी जयपुर, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्लीआलेख प्रकाशन
सम्पर्क
'कंचन-मोहन हाऊस,1, उदय विहार, महेशपुरम रोड़, चित्तौड़गढ़-312001,राजस्थान'
ई-मेल:manik@spicmacay.com
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एक परिचय यह भी हो सकता है
चित्तौड़गढ़ राजस्थान के निवासी औए यहीं अध्यापनरत माणिक हमारी नज़र में एक नवाचारी प्रवृति के अध्यापक हैं. ग्रामीण परिवेश में जन्मे, पले-बढ़ेऔर व्यवहार से बहुत सहज इन्सान हैं. चित्तौड़गढ़ जैसे मझले दर्जे के कस्बे में उनकी अध्यापकी और अध्यापन के समय बाद के खालीवक़्त में शहर में साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों के माध्यम से उन्होंने शहर को कई नए आयाम भेंट किए हैं. उनके ब्लॉग और फेसबुकी अपडेट्स से गुजरने के बाद कोई भी साथी इस बात का अंदाजा लगा सकता है कि उनका व्यक्तित्व कितनी विविधताओं से भरा हुआ है मगर उन्हें इस बात का रत्तीभर भी घमंड नहीं है.हमविचारों और खासकर युवाओं और स्कूली विद्यार्थियों के बीच उनके नित नए प्रयोग हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं.इसी तरह के ज़रूरी आयोजनों और उनके स्कूल में विजिट के दौरान हमने पाया कि वे अपने काम को बनी बनायी परिपाटी से कुछविलग ढंग से करने के आदी हैं.
कई बार यह भी लगा कि एक अध्यापक अगर समाज और शहर में पहले से चल रही सांस्कृतिक गतिविधियों में सक्रिय हिस्सेदारी निभाता चला आता है तो उसकी अध्यापकी में भी वे तमाम अनुभव धीरे-धीरे अपना रंग छोड़ने लगते हैं. एक सरीखे ढर्रे पर चलने वाले शिक्षक समाज के बीच जो अध्यापक साथी अलग से अपनी पहचान बनाते हैं उनमें कुछ तो ख़ास होता ही है. माणिक जैसे युवा के साथ प्लस पॉइंट यह रहा है कि वे कई मोर्चों पर सालों तक सक्रिय रहे हैं.उनकी काम करने की सक्रियता और तल्लीनता ही उनके काम को बड़ा बनाती है. एसटीसी डिप्लोमा के बाद से तीन साल की निजी स्कूल की नौकरी,बाद के पांच साल पैरा टीचर्स प्रोजेक्ट का अनुभव और उसका संघर्ष कम नहीं था.इस बीच माणिक साल दो हज़ार सात से ही राजस्थान लोक सेवा आयोग के मार्फ़त चयनित होकर शहर से सत्रह किलोमीटर दूर एक प्राथमिक विद्यालय में थर्ड ग्रेड वेतन श्रृंखला अध्यापक चुने गए. भील बाहुल्य बस्ती में आठ वर्ष तक पढ़ने-पढ़ाने की तमाम संभवनाएं तलाशते हुए उन्होंने ने हडमाला बस्ती में नौनिहालों के साथ कई प्रयोग किए. कभी सफल हुए कभी असफल. कम संसाधनों और गरीब बच्चों के बीच काम में कई मुश्किलात आती रही मगर वे कभी घबराए नहीं.
इस बीच साल दो हज़ार दो से स्पिक मैके नामक संस्कृतिक आन्दोलन में लगातार दायित्व निर्वाहन और वोलंटियर बनकर अनुभव अर्जन करते माणिक ने स्कूली शिक्षा में अपने बच्चों को लाभान्वित किया जो आज भी बदस्तूर डेढ़ दशक तक जारी रहा. स्कूली शिक्षा में अकादमिक पाठ्यक्रम के साथ ही साप्ताहिक बालसभा में शास्त्रीय संगीत और देश के विभिन्न हिस्सों से लोक गीतों के ऑडियो वीडियो संस्करण बच्चों को सुलभ करवाए. बच्चों को जीवन की शिक्षा देने के लिहाज से उन्हें कपड़े पहनने के ढंग से लेकर दन्त मंजन सहित नहाने धोने का सलीका सिखाने में भी कोई शर्म नहीं की. स्कूल की सफाई करने की बात हो या पथरीला इलाका होने केबावजूद परिवेश में पौधारोपण का अभियान, हमेशा बढ़ चढ़कर हिस्सेदारी की है.लगभग नीरस पाठक्रम के बीच अपने परिचित जानकार चित्रकारों को बुलाकर, बच्चों के लिए चित्रकारी कार्यशाला करवाने का मसला हो या भामाशाह के माध्यम से ज़रूरतमंद बच्चों को स्वेटर, पेन, पेंसल, युनिफोर्म, जूते दिलवाने का मुद्दा हमेशा उत्साह के साथ सकारात्मक काम किए हैं. वंचित तबके के विद्यार्थियों के बीच जीने की राह दिखाना वैसे ही कितना मुश्किल होता है मगर फिर भी हिम्मत नहीं हारी.बच्चों गुरु मित्र जैसी योजनाओं की तरह सौहार्दपूर्ण माहौल में शिक्षा के कई प्रयास माणिक की अध्यापकी का हिस्सा रहे हैं. कई बार उन्होंने स्कूली प्रार्थना के ठीक पहले भी शास्त्रीय संगीत के माध्यम से ध्यान और योग की कक्षाओं के आयोजन कर बस्ती के उन बच्चों को गहरी अनुभूतियाँ दी है जो वे कभी सोच भी नहीं सकते होंगे.
माणिक ने साल दो हज़ार छह से आकाशवाणी चित्तौड़गढ़ में आकस्मिक उद्घोषक के तौर पर भी लगातार दस साल तक अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है इससे उनके उच्चारण के साथ ही व्यक्तित्व में अभूतपूर्व त्वरा का विकास हुआ है.अध्यापक का बहुमुखी होना विद्यार्थियों के लिए बड़ा लाभकारी साबित होता है. माणिक राजकीय माध्यमिक विद्यालय दुर्ग चित्तौड़गढ़ जैसे ऐतिहासिक किले वाली जगह पर भी नियुक्त हैं. बीते एक साल में उन्होंने यहाँ भी कई नवाचार किए हैं. पहला ग्रीष्मकालीन पुस्तकालय जिसमें उन्होंने अपने निजी कलेक्शन से प्रतिनिधि कहानियां संकलन की बाईस किताबें एक आठवीं पास बच्चे के मार्फत बस्ती में वितिरित करवाई और गर्मी की छुट्टियों में उन्हें लगातार एक दूजे के बीच साझा करके पढ़ने का एक माहौल बनाया है. कक्षा आठ से दस तक के बच्चे इस उम्र में भी मन्नू भंडारी, कृष्ण चंदर, प्रेमचंद, ज्ञानरंजन जैसे बड़े रचनाकारों को पढ़ते हैं. यहाँ यह भी जोड़ते चलें कि माणिक ने आकादमिक शिक्षा के तौर पर हिंदी और इतिहास में स्नातकोत्तर डिग्री हासिल की है और वे वर्तमान में मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर से हिंदी की दलित आत्मकथाओं पर पीएचडी की हैं. साल दो हज़ार नौ से उन्होंने अपनी मेधा से 'अपनी माटी' नामक एक साहित्यिक ई पत्रिका भी स्थापित की है. पत्रिका के सम्पादन संबंधी अनुभव एक अध्यापक को और ज्यादा गंभीर और संवेदनशील अध्यापक में तब्दील करते ही हैं ऐसा हमारा मानना है. कई सारी बातें हैं.कक्षा पांच तक के बच्चों के बीच अपने लेवल बाल पत्रिकाओं खरीदकर उन्हें बांटना और फिर चर्चा के माध्यम से बच्चों की प्रतिक्रियाएं जानना, इस बीच लागातार जारी रहा.दुर्ग स्कूल के बच्चे चकमक, बाल भारती, चम्पक, बालहंस, नन्हें सम्राट जैसी पत्रिकाएँ पाकर पुलकित हैं. सबसे आख़िरी और नया प्रयोग विद्यालयी वातावरण में सुबह सवेरे म्यूजिक सिस्टम की सहायता से विभिन्न प्रार्थनाओं के ऑडियो संस्करण प्ले करके एक माहौल बनाना है. दूजा मध्यांतर भोजन के वक़्त फिर म्यूजिक सिस्टम के मार्फ़त शास्त्रीय धुनें बजाना ताकि बच्चे एकाग्र हों. ध्यान की तरफ बढ़ें. प्रार्थनाओं की लय-ताल सीखें. बच्चे स्कूल के प्रति एक नया आकर्षण अनुभव कर रहे हैं. माहौल म्यूजिकल हुआ है. शहर में चित्तौड़गढ़ फ़िल्म सोसायटी और आरोहण नामक मंच के माध्यम से माणिक ने युवाओं को देश दुनिया के सभी ज़रूरी मुददों पर कई जानकारों के व्याख्यानऔर फिल्म स्क्रीनिंग करवाने के भी कई अवसर गढ़े हैं. फिल्म स्क्रीनिंग के अनुभव और आर्काइव का लाभ उठाकर उन्होंने बाल मनोविज्ञान पर केन्द्रित कई फ़िल्में स्कूली बच्चों के बीच स्क्रीन करके उन्हें एक विलग और अद्भुत अनुभव दिया है. कुल जमा ये धाकड़ अध्यापक हैं. जो एक जगह रुकते नहीं हैं और लगातार कुछ न कुछ करते रहते हैं. सभी तरह की गतिविधियों के पीछे कहीं न कहीं कोइ एक गहरी सोच शामिल रही हैं.
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