कच्चेपन में कविताएँ लिखने के बाद कविताएँ रख दी है भक्कारे और परेण्डे से उतरे हांडे में पकने को कुछ दिन आम और सीताफल पकाने...

कच्चेपन में कविताएँ लिखने के बाद कविताएँ रख दी है भक्कारे और परेण्डे से उतरे हांडे में पकने को कुछ दिन आम और सीताफल पकाने...
हमारे दोस्त और युवा कहानीकार हरेप्रकाश उपाध्याय के सम्पादकत्व में प्रकाशित पत्रिका 'मंतव्य' के तीसरे अंक में मेरी भी एक कविता आ...
अरसा हो गया अरसा हो गया है ठीक से मुस्कराए जी-भर हँसे किसी बच्चे से बतियाते हुए तुतलाए,हकलाए यादों में इत्मीनान से लौटे हुए अरसा...
हदें पार करना नहीं आता उन्हें हदें पार करना नहीं आता उन्हें तुम्हारी तरह लूटने-खसोटने सहित बदन नोचना उन्हें नहीं आता जितना जिय...
माणिक वक़्त का धुंधलका लोक के आकाश पर अब सांझियाँ कहाँ सजती है फूल - गोबर से आँगन की दीवार से ...
चित्रकार:अमित कल्ला,जयपुर (1 ) कोहरा छँटने के इंतज़ार में यह छियासठवाँ साल है मालुम है कोई सूरज/वूरज नहीं उगेगा हमारी बस्ती को ...
गुरूघंटाल बिना दाड़ी बढ़ाए पहने बिना भगवा ,श्वेत या फिर कुछ और बेढंगा लिबास बिना भंडारा किए गले में सतरंगी मालाएं अटकाने हाथ फेरने ...
आदिवासी-आठ हदें पार करना नहीं आता उन्हें तुम्हारी तरह लूटने-खसोटने सहित बदन नोचना उन्हें नहीं आता जितना जिया जीवन उन्होंने सीमाओं...
(1 )इतनी आसानी तो कभी नहीं थी ? इस दौर में आसान हो गया है रिश्तों के रेतने की तरह बेमतलब की कविता करना इससे भी सरल कुकविताओं का छप ...
(1) बचा हुआ बचा हुआ रहना अच्छा लगता है पीहर जाते वक़्त उसका रह जाना कुछ मेरे पास फाके के दिनों में बरनी में बचे अचार की तरह निहा...
(1 ) खून-खराबा और लूट-खसोट देखने से बच गया असल में देर से आया अखबार आज सवेरे ( 2) अकाम बतियाने-मुस्कराने वाले वे लोग कहाँ हैं मर ...
खबर अच्छी है या बुरी इस बात का अंदाजा लगाना आपके जिम्मे। खबर ये कि मेरी दो 'कवितायेँ' राजस्थान साहित्य अकादमी की मुख...