(1) बचा हुआ
बचा हुआ रहना
अच्छा लगता है
पीहर जाते वक़्त
उसका रह जाना
कुछ
मेरे पास
फाके के दिनों में
बरनी में बचे अचार की तरह
निहायती ज़रूरी
और
ससुराल से वापसी में
ससुरजी के पास
अंशत:
छूट जाना पत्नी का
सास की छाती से लिपट जोर से
रोने के बाद
सुबकते हुए
उसका आना मेरे घर
आते में
पीछे मुड़-मुड़
अपनी जड़ों को
छूटते हुए की तरह
निहारना उसका
अच्छा लगता है
(2) लौटी हुई कविताएँ
चार कवितायेँ
जो अलग-अलग लम्बाई में थीं
आखिर लौट आई
आज भोपाल की डाक से
एक भी ढ़ंग की नहीं थी
छपने के लख्खण से रहित
बेचारी चार कविताएँ
अकाल मरी पड़ी है कवि के आँगन में
मौलिक सृजन के गाल पर
अब भी चमक रहा है लाल निशान
सम्पादकीय टिप्पणी वाले
तमाचे का
चारोंमेर एलान कर दो
अब कुछ दिन चुप रहेगा
उन कविताओं का बाप
उठावने तक बतियाना मत
कविताओं की जननी से
ग्यारहवें बाद सोचेंगे
घर में
राय-मशवरे कर लिखेंगे
आगे की कविताएँ
तब तक कुछ भी नहीं दिखेगा
सिवाय
चार अकाल मरी हुई कविताओं के
(3)किला
बचा हुआ रहना
अच्छा लगता है
पीहर जाते वक़्त
उसका रह जाना
कुछ
मेरे पास
फाके के दिनों में
बरनी में बचे अचार की तरह
निहायती ज़रूरी
और
ससुराल से वापसी में
ससुरजी के पास
अंशत:
छूट जाना पत्नी का
अच्छा लगता है
सास की छाती से लिपट जोर से
रोने के बाद
सुबकते हुए
उसका आना मेरे घर
आते में
पीछे मुड़-मुड़
अपनी जड़ों को
छूटते हुए की तरह
निहारना उसका
अच्छा लगता है
(2) लौटी हुई कविताएँ
चार कवितायेँ
जो अलग-अलग लम्बाई में थीं
आखिर लौट आई
आज भोपाल की डाक से
एक भी ढ़ंग की नहीं थी
छपने के लख्खण से रहित
बेचारी चार कविताएँ
अकाल मरी पड़ी है कवि के आँगन में
मौलिक सृजन के गाल पर
अब भी चमक रहा है लाल निशान
सम्पादकीय टिप्पणी वाले
तमाचे का
चारोंमेर एलान कर दो
अब कुछ दिन चुप रहेगा
उन कविताओं का बाप
उठावने तक बतियाना मत
कविताओं की जननी से
ग्यारहवें बाद सोचेंगे
घर में
राय-मशवरे कर लिखेंगे
आगे की कविताएँ
तब तक कुछ भी नहीं दिखेगा
सिवाय
चार अकाल मरी हुई कविताओं के
(3)किला
मैं जब भी किला देखता हूँ।
तो असल में
मैं 'किला' नहीं देखता।
देखता हूँ
एक अख्खड़ इंसान को झुकते हुए
बने बनाए सिद्धांतों के अपवाद
और तयशुदा नियमों का गलन
देखता हूँ
लगातार और अबाध
आलीशान जीवन का अवसान
दिखता है मुझे
धीरे-धीरे
जीवन में बदलाव और वक़्त के थपेड़ों से
एक रुतबे में घटाव
दिखता है मुझे किले में
इस तरह
मैं जब भी किला देखता हूँ।
तो असल में
मैं 'किला' नहीं देखता।
माणिक
अध्यापक