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21 जनवरी, 2014
'परिकथा' पत्रिका के नवलेखन अंक(January-February 2014) में छपी अपनी कविताएँ

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मंगलवार, जनवरी 21, 2014

माणिक  वक़्त   का   धुंधलका लोक   के   आकाश   पर अब   सांझियाँ   कहाँ   सजती   है फूल - गोबर   से आँगन   की   दीवार   से ...

 
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