चित्रकार:अमित कल्ला,जयपुर |
कोहरा छँटने के इंतज़ार में
यह छियासठवाँ साल है
मालुम है कोई सूरज/वूरज नहीं उगेगा
हमारी बस्ती को धूजने से बचाने के लिए
बस आदत है तो
बैठे हैं अलाव के चारोंमेर
आस का कम्बल लपेटे
हर एकाध घंटे में
बार-बार ज़मीन पर गिरते कम्बल का पल्लू सँभालते हुए
एक दूसरे से कहते हैं
बस कोहरा छँटने वाला है
तभी हमीं में से एक अलाव को कुचेर कर
अँगारों के ऊपर की राख हटाता है
यही शगल है जिसके सहारे
ठण्ड से मरे हुओं की तरह हमारी शक्लें
फिर भी ज़िंदा आदमी से मेल खाती है
(2 )
सर्दी है
यह प्राथमिक दर्जे का सच है
रजाई छूट नहीं पा रही है
यह दूसरे दर्जे का
तीसरे सच से सने वाक्य के कुछ शब्द
गोया
बतौर कच्ची सामग्री:तिल्ली का तेल,हाजी के फूल,पीली मक्की का आटा,धनियाँ,मटर,अजवायन
बतौर परिणाम:ढोकले,हाज्या,मक्की की पापड़ियाँ
(3 )
दिलो-दिमाग है कि
अड़ा है ज़िद पर
हो-हल्ले के बीच भी सुनता चाहता हैं
धुँधलके से बचे हुए
सँझा गीत गोया
'सूनी सँझा, झाँके चाँद
मुँडेर पकड़ कर आँगना
हमें, कसम से, नहीं सुहाता-
रात-रात भर जागना ।'
(4 )
अपनों की एक फ़ौज परदेस में हैं
शहर उदास है
ऊपर से कोहरा है
इस अकेलेपन में
प्रेम की एक भी इबारत पढ़ी नहीं जाती
कानों में गूँजती है बस
बीते दिनों की बतकही
माणिक |
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें