हमारे दोस्त और युवा कहानीकार हरेप्रकाश उपाध्याय के सम्पादकत्व में प्रकाशित पत्रिका 'मंतव्य' के तीसरे अंक में मेरी भी एक कविता आयी है.शुक्रिया भाई
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मम्मियां देर तक ताकती हैं
बसें
जिनमें जाते हैं स्कूल
उनके बच्चें
बसों के हांके जाने के बाद भी
उछला करते हैं बच्चे
मम्मियों के विचारों में
तंग करते
मुश्किल से उठते,नहाते
नाश्ते की मान-मनुहारों के बीच
टाई बांधते बच्चे
फर्राटे से बोलते हैं मम्मियों के मन में तब भी
जब जा चुकी होती हैं बसें
वे तेज़ कदमों से घर की तरफ भागती हुयी
योजनाएं बनाती हैं
साहेब के तीन खंडिया टिप्पन बनाने से
झाडू-पोछे और बरतन वाली बाई के आने तक
मेरा मानना है
पापा लोग बसों और बच्चों को उतना नहीं ताकते
जितना ताकती और निहारती हैं मम्मियां
माथे चूमती और दुलारती है देर तक
सहलाती हैं पीठ-गाल और कंधे
देती हुयी सलाहें रोज़-रोज़
रटे हुए पाठों की तरह
न एक पंक्ति इधर
न एक कॉमा उधर
जब स्कूलों में बच्चे सिख रहे होते हैं
पॅकेज पाकर बड़े शहरों में जा बसने
माँ-पिता को भूलने के नुस्ख़े
ठीक एन वक़्त
मम्मियां स्वेटर बुनती हैं उनके लिए
सलाइयों के फंदों बीच
बच्चों के ही चेहरे रहते हैं
सवेरे के चूमे हुए लाडलों की बाट जोहती
मुहल्ले की मम्मियां
ठीक वक़्त से पहले पहुँच जाती हैं चौराहे पर
बातों में मशगूल होकर भी
कभी नहीं चुकती
बसों के आने का वक़्त
एक घड़ी जो उनके अंदाज़ में हमेशा चलती रहती है
और
वक़्त होते ही वे चल पड़ती चौराहे की ओर
बसों से उतरने लगते हैं उनके बच्चे
मम्मियां उतरते ही थैला खुद टांग लेती हैं
उनके ललाट पर हाथ फेरते हुए
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सन 2000 से अध्यापकी। 2002 से स्पिक मैके आन्दोलन में सक्रीय स्वयंसेवा।2006 से ऑल इंडिया रेडियो,चित्तौड़गढ़ से अनौपचारिक जुड़ाव। 2009 में साहित्य और संस्कृति की ई-पत्रिका अपनी माटी की स्थापना। 2014 में चित्तौड़गढ़ फ़िल्म सोसायटी की शुरुआत। 2014 में चित्तौड़गढ़ आर्ट फेस्टिवल की शुरुआत। कई राष्ट्रीय सांस्कृतिक महोत्सवों में प्रतिभागिता। अध्यापन के तौर पर हिंदी और इतिहास में स्नातकोत्तर।
प्रकाशन:मधुमती,मंतव्य, कृति ओर,परिकथा,वंचित जनता,कौशिकी,संवदीया ,उम्मीद और पत्रिका सहित विधान केसरी जैसे पत्र में कविताएँ प्रकाशित। कई आलेख छिटपुट जगह प्रकाशित। माणिकनामा के नाम से ब्लॉग लेखन। अब तक कोई किताब नहीं, कोई बड़ा सम्मान नहीं।
सम्पर्क-चित्तौड़गढ़-312001,राजस्थान।मो-09460711896,ई-मेल manik@apnimaati.com
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