कल से सरकारी स्कूलों में तथाकथित वार्षिक परीक्षा शुरू होगी.कई बकरियां चराते,लहसुन काटते और खेतों में अफीम के बचेखुचे दोड़े बीनते बच्चों को हाथ पकड़ पकड़ कर स्कूल बुलाया जाएगा.कईयों को बार बार चेताया जाएगा की कोई भी बिना कहे/पूछे मामा/नानी के घर नहीं खिसकेंगे.स्कूल के साथ घर में हाथ बँटाते बच्चों के घर के कामकाजी टाईम टेबल के हिसाब से परीक्षाओं के समय ऊपर नीचे किए जाएंगे.अरे हाँ मतलब इसके ठीक बाद लम्बी छुट्टियां.कभी फेल-पास के रिज़ल्ट होने की तारीख भी बीच में पड़ती थी वो अब केवल पास होने की तारीख भर बन चुकी है.ये इस साल की हकीक़त है. खासकर गावों की.
इस बारी हमारी राष्ट्र भाषा हिन्दी की किताब नहीं पढ़ पाती प्रियंका छटी पढ़ने दूजे गाँव जाएगी.पिताजी के साथ गेंहू कटवाता नारायण और उसके तीन साथी भी पास के गाँव ठीकरिया जाने के चस्के दमाग में चढ़ाए घूम रहे हैं.बिना माँ-बाप की अनिता शायद पांचवीं पास होकर भी ठीकरिया नहीं जा पाए.वैसे भी अनिता आधा वक्त गुज़र जाने के बाद ही स्कूल आ पाती थी.ये सिलसिला पूरी पांचवीं चलता रहा.कन्हैया लाल क्लास में सबसे आगे होकर बारह तक पहाड़े बोलने की महारत लड़का है,जिसके दादाजी हाल गुज़रे हैं अब शायद साल पर पास होते ही गाँव छोड़ जाएगा.मुकेश और मनोहर बहुत याद आएँगे.कारण एक तो वो जोड़ बाकी गुणा भाग करना जानते थे दूजी बात ये कि वे स्कूल को साफ़ सुथरा बुहारते रहे थे.अब नए साल पर नए लड़के तैयार करने होंगे.ये तमाम बातें उन अबोध भील बच्चों के हित लिखी है.जो मेरे जीवन का हिस्सा है.
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