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रास्ते ने
कितनी कवितायेँ दी
मगर मैं मूर्ख
पढ़कर बिसारता रहा
अच्छी रचना की लालसा
में
जब
तय कर आया
पूरा सफ़र
भागता हुआ
अब
फीकी नज़र आती है
मंझिल
कविताओं भरे
उस रास्ते के आगे
(2)
सबकुछ तो तय
है पहले से यहाँ
रंगमंच,पात्र
सूत्रधार,संवाद
और परदे के उठने-गिरने का
ठीक वक़्त तय है
सबकुछ तयशुदा है
इस जीवन में तो
आमद,रास्ते
मंझर,हमसफ़र
दोस्त-दुश्मन
सहित मंझिलें तमाम
तय हैं
सब कुछ निर्धारित है
पहले से यहाँ
बिछी हुयी जाजम की तरह
हमें तो बस
गाने हैं केवल गीत
जो सारे के सारे
उनकी मर्जी से
तय हो चुके होंगे
छप हुए कागज़ की तरह
तय हैं यहाँ
आरोप,ज़वाब
ताने-उलाहने
गवाह-वकील
गुनाहगार सहित
सबकी दुकानें
सजी हुयी है पहले से ही
दायित्व पता है सभी को
अपना-अपना
लूटना-खसोटना
तोड़ना-मरोड़ना
सांच-झूंठ के खेल सहित
उठापटक के सभी षडयंत्र
तैयारशुदा हैं
लगता है अब तो आखिर में
कि ये जीवन तो तय है
कुछ लोगों की तयशुदा चाल की
तरह
जिसमें वे चंद लोग जीतते जा रहे हैं
और हम असंख्य होकर भी
चुपचाप
sunder rachnayen jeevan key satya ko ukertey hue.
जवाब देंहटाएंdr.bhoopendra
rewa
mp