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21 नवंबर, 2012

21-11-2012

डायरी आँखें फाड़ फाड़कर देख रही है जब इसके हिस्से आज कुम्भा नगर वाले इस झोंपड़े में दो हमउम्र मित्रों का आना लिखा जा रहा है। ये शाम कुछ आम किस्म के दोस्तों के नाम रही जहां कुलमिलाकर मित्रता में हमारा संघर्षमय जीवन एक साथ हमारे बोलने से पहले ही आगे आगे बोलरहा था। चाय और आलूबड़ों ने बातों में सरसता बरती। इच्छाओं के विपरीत हंसी ठठ्ठे के बीच बहुत से ईशारे हमें गहन विमर्श तक ले गए। ये वही घर है जहां इस क्रिसमस पर हमें  रहते हुए दो साल पूरे हो जायेंगे। ये वही महीना है जब मुझे उम्र में तैंतीसवा लग जाएगा। ये वही देवउठनी ग्यारस है जिस पर हमारी शादी को छ: साल पूरे हो जायेंगे। हाँ तो वे मित्र थे विकास और भगवती। 

विकास,दिनों के बाद आये त्योंहार की तरह आया। आदित्य सीमेंट में सीनियर केमिस्ट हैं मगर शिफ्टों के झमेले से आंशिक रूप से परेशान। हाज़मे की खराबी के चलते पेट पकड़े हए बहिन वर्षा की शादी के कार्ड बाँट रहा था। रात के साढ़े  नौ बज गए सो मेरे घर ही आख़िरी कार्ड दे कर गप्पेबाजी में लग गया। सेठों की नौकरी के प्रत्यूत्तर में वो सरकारी नौकरी पर खासा लट्टू होने वालों में मेरा एकलौता पक्का यार था। 

भगवती अपनी पत्नी सहित इसलिए भी आया क्योंकि दिवाली के बाद घर-घर जाने की प्रथा हैं।हम कुछ दिन पहले उनके घर गए थे क्योंकि वे हमारी तरह के संघर्षों से निकले हुए प्राणी थे। मतलब हमदर्द।बाकी बहुत से सेठ किस्म के घरों में हम मिठाई खाने नहीं जा सके,जहां डबुसे के डबुसे सूखे मेवे परोसे जाने तय थे। एक तरह से भगवती बाबू उतर-पातर करने आये थे। 

आज किले घूमने के चक्कर के समानांतर किसी का जन्मदिन बस यूंही गुज़र गया। एक समझौते  के तहत प्रभावित पक्ष ने कोई शिकायत नहीं की और आम जनता की दया पर सरकार चलती रही। खाने के साथ केवल आलूबड़े ही ईठला कर रह गए। एक बात और जो क्रम में पहले आनी थी यहीं लिख देता हूँ,शाम होने के ठीक पहले आज चित्तौड़ के कवि और गीतकार अब्दुल ज़ब्बार आये। अपने एक गीत की रिकोर्ड की हुयी ऑडियो क्लिप लेकर।बड़े उत्साह संपन्न।सादगी से लबरेज।देश में अपने दौरों का ज़िक्र करते हुए कह उठे ,भाई समय निकाल के वो मेरे भी वेबसाईट बना दो यार।क्या माल-मटेरियल चाहिए बता देना।कुछ खर्चा हो तो वो भी बता देना।यूंही रात आ गयी और एक डायरी फिर बहुत सी अधूरे विचारों को यहीं बाई कहती हुयी ख़त्म हो गयी।

मन को सुकून अनुभव होता है जब साथी,फुरसत निकाल कर घर आते-जाते-बुलाते और मुस्कुराते हैं।

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