स्कूल समय सुबह साढ़े सात से दोपहर बारह बजे का हुआ.नौकरी के बाद भी आधा दिन पूरी तरह अब बचा करेगा.खासकर घर के काम निबटाने के काम आएगा.आज दोपहर ही आकाशवाणी में चिमनाराम जी के सानिध्य में वहाँ प्रशिक्षण ले रहे नए बेच से परिचय हुआ.एकदम फ्रेश चेहरे जो रेडियो पर फ़िदा हुए चले आए थे.उन्ही में से कोई पैसों के लिए ज़रूरतमंद होकर भी आया होगा.कोई केवल आवाज़ के आकाश तक जाने के आकर्षण के चलते भी आ गया होगा.केवल दो पुरुष प्रतिभागी बाकी तमाम महिलाएं.शायद कोई दस-बारह के करीब संख्या में होगी.महिला जगत और किसानवाणी जैसे प्रोग्राम के लिए चयनित.हिन्दी के आदी उन्हें अब मेवाड़ी बोलनी थी.सभी इस नई दुनिया को आँख-कान खुले रखकर समझ रहे थे.सहमे हुए मगर रुचिशील.
केंद्र से घर लौटते में इसी दिन रास्तों पर कई असर देखे जो आगमी अठारह मार्च के आस-पास होने वाले जौहर मेले की सरकारी तैयारियों की वज़ह से थे.तमाम गड्डे-नालियाँ दुरस्त,रास्ते साफ-सुथरे.रोड़ीयाँ साफ़,कचरा पात्र अचानक उग आए.जिन रास्तों से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत गुज़रेंगे,एकदम आवभगत करते दिखे.किले को जाती,ऊपर चढ़ती सड़क के सभी दाग पर मलहम लगाई गयी.कलेक्टर ऑफिस के बाहर दीवार पर गांधीजी की दांडी यात्रा के स्टेचू एक तम्बू की आड़ में फिट किए जा रहे हैं.उनका भी उदघाटन होना है.शहर के तमाम होर्डिंग पर जौहर मेले के विज्ञापन चस्पा गए हैं.
शाम के समय हमारी दीदी किरण आचार्य का घर आना और बातों के बीच उनकी कुछ पुराने कवितायेँ सुनना भी याद रहेगा.उदयपुर में बनने वाले उनके मकान की लम्बी निर्माण प्रक्रिया के किस्से,निम्बाहेड़ा फेक्ट्री की कोलोनी में लोहड़ी मनाने की रपट हो या कि फिर साथी लोगों के साथ की बातें.लगातार.बहुत खुले रूप में छिंटाकसी.कलाकार मन के अपने दुखड़े.समाज के प्रति रुचिशील होने के मायनों पर लंबा विमर्श.ये संगत उनके बेटे के उन्हें लेने तक जारी रही.
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