(जन्म 1 सितंबर 1923-निधन8 जून 2009)
छत्तीसगढ़ी संस्कृति कोअपने असीमहुनर केजरिए पूरेविश्व मेंपूरजोर तरीकेसे रखतेहुए एकसमानतापरक समाज के मुद्दे कोमजबूती देताहुआ अनोखेव्यक्तित्व हबीब तनवीर आज हमारेबीच नहींहै। उनकेबारे में, उनके नहींहोने केबाद लिखनेमें श्रद्धाऔर श्रद्धांजलिके भावमें डूबीमेरी कलमअपने ढंगसे कुछलिखने कासाहस कररही है।स्पिक मैकेजैसे सांस्कृतिकअधिक मगरलगभग सभीविरासती पहलुओंको समेटतेहुए लाखोंविद्यार्थियों के दिलो-दिमाग परदस्तक देनेवाले छात्रआन्दोलन नेही मुझेऐसा सुनहराअवसर दियाकि मैंहबीब तनवीरजैसे विरासतपुरूष सेमिलने, उन्हेंदेखने औरमन हीमन लगातारसवाल करनेका मौकापा सका।
बरस 2003 के गर्मियोंके दिनोंकी बातहै, इधर-उधर से पैसे काजुगाड़ करमुझे स्पिकमैके केराष्ट्रीय सम्मेलन में जाने कोमिला। व्यवस्थितऔर डरे-डरे सेएक अनुशासितप्रतिभागी की तरह मैं भीसनबीम स्कूलबनारस कीचार दिवारीमें तनवीरजी सेदूर बैठे-बैठे पहलीमुलाकात कोगढ़ रहाथा। एकऐसी मुलाकातजिसमें मेरेदिल मेंउनसे पूछताछकरने केलिए कईसारे सवालखड़े थे।वे लगभगचुप थे, लगे हुएथे अपनेकाम में।ऐसा लगताथा मेरेहर प्रश्नका जवाबवे अपनेहाव-भावऔर कामकरने केतरीके सेदिए जारहे थेऔर मैंबस उन्हेंदेख रहाथा।
आज भी यादहै वोदुबली काया, थोड़े सेलम्बे बाल, सीधी-सादीपोशाक में, लेकिन उनकेहोठों परलगा दाँतोंके बीचपकड़ा हुआतो कभीकभार एकहाथ सेथामे हुएसिगार। साथही चश्मेंके पीछेपैनी नजररखती हुईउनकी अनुभवीआँखें औरआँखों केसामने उनकेसानिध्य मेंकाम करतेछत्तीसगढ़ केसीधे-सादेकलाकार। अंग्रेजीऔर हिन्दीके साथ-साथ कभी-कभार छत्तीसगढ़ीभाषा मेंडायलॉगबाजी करते हुए हबीब जीके चारोंओर खड़ेकई सारेउनके तारीफ़दारदेख रहाथा। उनकाकभी कभारतुनक करजवाब देजाना औरकभी बहुतलम्बी, गहरीसोच मेंबैठे रहना, याद आताहै।
ठीक से यादनहीं लेकिनठेठ छत्तीसगढ़ीआदिवासियों की छुपी- छुपाई कलाकारीको परखकर निखारनेके लिएआँखें गढ़ाएकाम करनाउनकी आदतमें शुमारथा। देशभरके साथही विदेशीधरती परघूमने- फिरनेके बादकोई बड़ीनौकरी नकरके औरलाखों रूपयेकी कमाईके तरीकोंको छोड़गंवई संस्कृतिसे अभिभूतहोकर आमआदमी कीमजबूरियों का समाजशास्त्र समझते हुएउन्होंने ‘‘नया थिएटर’’ के नामसे अपनीसंघर्षमयी यात्रा की शुरूआत की।पच्चीस सेतीस कलाधर्मी, गरीब औरलगभग बेकामके आदिवासीछत्तीसगढ़ी पुरूषों और महिलाओं कोसाथ लेकरउनका प्रसिद्धनाटक ‘‘चरणदासचोर’’ काबनारस मेंमेरा देखाहुआ प्रदर्शनआज भीरह-रहकर रोमांचितकरता है।उस समयमालूम नहींथा किहबीब जीबहुत बड़ेव्यक्तित्व हैं।
टीवी और रेडियोके जरिएनाटकों कोदेखने परमैं पहलीबार सजीवनाट्यमंचन को देख, चकित था।बनारस मेंहुए कार्यक्रमके बादरौंगटे खड़ेहोने कीबात कोवाकई अनुभवकर रहाथा। देहातीसंस्कृति, भाषा, पहनावा और लोकगीतआदमी मेंकितना अंदरतक असरकर सकतेहैं? उसीदिन जानपाया था।लगे हाथहबीब जीके साथकुछ साथियोंको बटोरकर एकफोटो भीक्लिक करवालिया। जिसदिन उनके नहीं होने की खबरमुझे मिलीतो अपनेजीवन औरआस पासमें कुछखाली सालगा। तुरन्तअटाले मेंपड़ी एलबमसंभाली, कहींदबा हुआवही फोटोमेरे हाथमें थाऔर मैंलिख रहाथा उसरंगमंच कीदुनिया केअस्त हुएसूरज सेमेरी पहलीमुलाकात काअनुभव।
बाद के बरसोंमें उनकोअख़बार, टीवी, फिल्मों औरअपने बड़ेबुजुर्गों के जरिए पढ़ता रहाऔर जानतारहा। भोपालवासीहोकर भीअपनी लम्बीयात्राओं सेपूरे संसारके लिएअपने थे।लम्बे भाषण, कॉमरेडी छवि, उर्दू जबान, इप्टा औरप्रगतिशील लेखक संघ में उनकाकाम, देशभरमें उनकेनाट्य मंचनका विरोध, कई राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय सेमिनारों में उनके व्याख्यानउन्हें अमरकर गये।दर्जनों फिल्मोंके लिएउन्होंने अपनेहुनर कोजनता केदिलो दिमागपर असरकरने केलिए छोड़दिया था।दर्शकों कोनाटक देखनेके बादसोचने केकई सारेमुद्दे देनेकी ताकतरखने वालेहबीब जीके बारेमें उनकेकई शिष्योंके जरिएभी मैंउनसे लगातारजुड़ रहाथा।
वर्ष 2005 में मणिपाल(कर्नाटक) में हुए राष्ट्रीय अधिवेशनके दौरानउनके बगैरउनकी नाट्यमंडली केकलाकारों द्वाराप्रस्तुत ‘‘पोंगा पंडित’’ का एक‘शो’ देखाऔर शोके एकदिन पहलेही उनकीइस संघर्षयात्रा मेंसहयोगी रहीमोनिका मिश्रा(पत्नी) केनहीं रहनेकी खबरमिली। ऐसेमें उनकेबहुत बड़ेसहारे काउठ जानाउनकी इसयात्रा मेंरूकावट पैदाकरने केलिए पर्याप्तथा, मगरबेटी नगीनतनवीर केसहयोग सेवे अनवरतकाम करतेरहे। हौंसलान हारतेहुए लगातारचलने वालेइस राहगीरको कभीसंगीत नाटकअकादमी तोकभी पद्मश्रीऔर पद्मभूषणजैसे सम्मानोंसे भीनवाजा गया।इस यात्रामें कभीराज्यसभा सदस्यरहकर भीअपनी ज़बर्दस्तउपस्थिति दर्जकराने वालेहबीब जीआज हमारेबीच नहींहै, विश्वासनहीं होता।लगता तोयूँ भीहै किवे अबऔर ज्यादाअच्छे सेहमारे बीचहैं।
यपुर और नागपुरमें अपनेबचपन कोगुजारने वालाव्यक्तित्व कब हिन्दुस्तान के हरकलाप्रेमी के दिल पर राजकरने वालाराजा बनगया, पतानहीं चला।पता तोयह भीनही चलाकि ‘‘आगाराबाजार‘‘, ‘‘मिट्टी की गाड़ी’’, ‘‘मुद्राराक्षस’’, ‘‘गांव का नाम ससुराल-मोर नामदामाद’’, ‘‘जिन्हें लाहोर नहीं देख्या’’ जैसे कईंनाटकों कीबागडोर संभालनेवाला अबनहीं रहा।दर्जनों फिल्मोंके लिएलिखने वाला, चरणदास चोरऔर ब्लेकएण्ड व्हाईटजैसी फिल्मोंके लिएअभिनय करनेवाले हबीबतनवीर हमेशाहमें अपनीकविताओं औरलेखनी केजरिए यादआता रहेगा।ऑल इण्डियारेडियो मुम्बईने प्रोड्यूसरके रूपमें कामकी शुरूआतकरने वालेहबीब तनवीरने अपनेकाम
के जरिए सबकेलिए कुछन कुछयाद रखनेको जरूरछोड़ा है।
हबीब जी नेअपने 85 सालके इससफर मेंकई युवाओंऔर बड़ेबुजुर्गों को अपने अनुभवों औरनाटकों केजरिए बहुतकुछ सिखायाहै। रास्तेकी अड़चनेंउनके लिएमजबूती देनेमें सहायकबनती गई।मणिपाल केअधिवेशन केएक सालबाद हीगाजियाबाद के उत्तम स्कूल मेंऔर भीछठी सेबारहवीं तकके विद्यार्थियोंका राष्ट्रस्तरीय आश्रमनुमामहोत्सव मेरेलिए फिरसे हबीबजी सेमिलने काबहाना साबितहुआ। राजस्थानीलेखक औरविद्वान विजयदानदेथा (विज्जीबाबू) कीलिखी हुईरचना ‘‘चरणदासचोर’’ कोनाटक केरूप मेंपूरी दुनियाभरमें फैलानेवाले हबीबतनवीर किसीभी संदेहके बगैर, महापुरूष है।
शहनाई नवाज उस्तादबिस्मिला खां, तबला विद्वानपं. किशनमहाराज, गुरूअम्मानूर माधवचाक्यार होया साहित्यकारनिर्मल वर्माया किफिर लोककलाओंके जानकारकोमल कोठारी, सभी चलेगये औरअब रहगया हैकेवल उनकेकाम औरउनकी यादोंका सफर।देश कीइन सिद्धहस्त, कर्मठ, योगीऔर तपस्याजैसे पवित्रशब्दों कोसाकार करनेवाले कलाधर्मियोंको पूरेआदर केसाथ यादकरने औरउन्हें कईमायनों मेंजीने केलिए आपसभी कोप्रेरित करनेकी तरफमेरा इशाराहै। अच्छाहोता समयरहते कुछसीख लेते, आज फिरसे, जोभी बड़ेफनकार हैउनसे समयरहते सीखलिया जाए, कुछ पलउनके साथबिता लिएजाए तोफायदा हीरहेगा। आनेवाले समयमें टीवी, रेडियो, इंटरनेट, अखबार औरपत्रिकाओं में बड़े लोगों केबारे मेंबहुत कुछलिखा औरछपा हुआमिल जाएगा, लेकिन नहींमिलेगा तोउनसे सजीवबातचीत कामौका।
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