चित्तौड़ के चंद्रलोक सिनेमा के ठीक सामने कोर्नर पर बने एक गेस्ट हाउस में उसके मालिक और कविता के करीब रामेश्वर पांड्या और अब्दुल ज़ब्बार जैसे रचनाकारों ने एक कवि गोष्ठी रखी.दिन में मिले फोन के मुताबिक़ मैं वहाँ शाम सवा छ: हाज़िर था.दरिया,बिसतरे,तकिये बीछ रहे थे. एक दो हाथ मैंने भी लगाए.बहाना राजीव गांधी की पुण्य तिथि के स्मरण का था.बेनर आज ही जन्मी संस्था और विचार 'अमन' करके कुछ था.लंबा नाम था,उसके टेग लाइन भी अपनी लम्बाई के कारण याद नहीं रही.मूल विचार की उपज अब्दुल ज़ब्बार का ही है ये बात दावे से कही जा सकती है . खैर.तमाम कवि के आने तक सात बज गए.संचालन की ज़िम्मेदारी आपाधापी में प्रयोग के तौर पर मुझ जैसे युवा को दी.पहले राजीव गांधी जी को मालाएं पहनाने का दौर चला.फोटूफाटी खींचे गए.भास्कर के दुर्गेश शर्मा भी एक फोटू पाड़ ले गए.इस पूरे मामले में राजीव जी की तस्वीर,मालाएं,बीच बीच में आते आमरस,आयोजक संस्था का परिचय देते बेनर फोटू में आ जाये,ये बड़ी चिंता का विषय समझा गया.
आये लोगों में केवल विशुद्ध रूप से तो तीन श्रोता ही थे बाकी कविता पढ़ने वाले.ये बात उनका जी ही जानता है कि किसने नयी और अप्रकाशित रचना पढी या कि फिर घिसीपिटी दे चिपकाई.सादे तरीके से बिना लागलपेट मैंने सूत्रधार की भूमिका निभाई.आम सूत्रधारों की तरह बीच बीच में मेरे द्वारे दोहे,शायरियाँ नहीं ठूंसी गयी.एक या दो बंद मैंने अपनी कविता से ज़रूर पढ़े.पढ़ने वालों की हाज़री भरे तो निम्बाहेडा से आये मैकश अजमेरी,एजाज़ अहमद थे बाकी जमात चित्तौड़ प्रोपर की ही थी.आयोजन और प्रायोजक के अलावा लोगों में रघुनाथ सिंह मंत्री थे जो बीच में ही उठ चले गए.बाकी शिव मृदुल,अमृत 'वाणी' रमेश शर्मा,नन्द किशोर निर्झर,भारत व्यास,मनोज मख्खन शामिल थे.सभी ने एक एक कविता सुनाई.रात की नौ बजे गोष्ठी ख़तम हुई तो आमरस के साथ.मशानिये राग की तरह कविता से आज की आज क्रान्ति लाने जैसी बातों के बीच हर महीने की पच्चीस तारीख को शाम पांच बजे मिलने के वादे किये गए.अन्तोगत्वा अब्दुल जाबार जी को थेंक्यू कि उन्होंने लिखने पढ़ने वालों को मिलाया बाकी चित्तौड़ में लोग लिखते पढ़ते हैं तो अपने अपने घरों में.चाहर दीवारियों के भीतर.बिना बोले,सुनाये और सुने।
आये लोगों में केवल विशुद्ध रूप से तो तीन श्रोता ही थे बाकी कविता पढ़ने वाले.ये बात उनका जी ही जानता है कि किसने नयी और अप्रकाशित रचना पढी या कि फिर घिसीपिटी दे चिपकाई.सादे तरीके से बिना लागलपेट मैंने सूत्रधार की भूमिका निभाई.आम सूत्रधारों की तरह बीच बीच में मेरे द्वारे दोहे,शायरियाँ नहीं ठूंसी गयी.एक या दो बंद मैंने अपनी कविता से ज़रूर पढ़े.पढ़ने वालों की हाज़री भरे तो निम्बाहेडा से आये मैकश अजमेरी,एजाज़ अहमद थे बाकी जमात चित्तौड़ प्रोपर की ही थी.आयोजन और प्रायोजक के अलावा लोगों में रघुनाथ सिंह मंत्री थे जो बीच में ही उठ चले गए.बाकी शिव मृदुल,अमृत 'वाणी' रमेश शर्मा,नन्द किशोर निर्झर,भारत व्यास,मनोज मख्खन शामिल थे.सभी ने एक एक कविता सुनाई.रात की नौ बजे गोष्ठी ख़तम हुई तो आमरस के साथ.मशानिये राग की तरह कविता से आज की आज क्रान्ति लाने जैसी बातों के बीच हर महीने की पच्चीस तारीख को शाम पांच बजे मिलने के वादे किये गए.अन्तोगत्वा अब्दुल जाबार जी को थेंक्यू कि उन्होंने लिखने पढ़ने वालों को मिलाया बाकी चित्तौड़ में लोग लिखते पढ़ते हैं तो अपने अपने घरों में.चाहर दीवारियों के भीतर.बिना बोले,सुनाये और सुने।
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