उधेड़बुन
आज तीन जगह के बुलावे जेब में है। सलूम्बर से विमला जी भंडारी का बाल साहित्य सम्मलेन का उदघाटन है। उदयपुर में नन्द किशोर जी के मोहन सिंह मेहता ट्रस्ट का संभागीय साहित्यकार सम्मलेन है। उदयपुर में ही तीन दिवसीय समता लेखक सम्मलेन का दूसरा दिनी आयोजन आज है जिसमें हिम्मत जी सेठ से कल ही बुलावा आया। पत्नी से पता लगा कि आज बेटी अनुष्का के लिए उसके स्कूल केलिबर अकादमी सीनियर सेकंडरी स्कूल में वार्षिक अध्यापक-अभिभावक बैठक है। इधर मेरी सरकारी नौकरी में स्कूल में जहां कुल नामांकन 29 का है।प्राथमिक स्कूल में दो की न्यूनतम अध्यापक व्यवस्था की एवज़ में तीन साथी हैं। मगर आसोज-कार्तिक महीने में सभी बच्चे अपने माँ-बाप के साथ घर की सेवा में लगे हैं। स्कूल आते हैं मुश्किल से दस। इसी बीच हमारी नोडल ऑफिसर ने कल कहा कि दस बच्चियां नोडल केंद्र पर लायें। वहाँ शनिवार यानिकी आज 'आओ देखो सीखो' आयोजन है।जाएँ तो जाएँ कहाँ।
इस पूरी उधेड़बुन में मन कहीं और जाने को कहता है।मज़बूरी कहीं और जाने को।गृहस्थी कहीं और जाने को।और नौकरी कहीं और जाने को कहती है। इन सभी विचारों के बीच मुझे बार-बार याद आती है।फकीरी।घुमक्कड़ी।यायावरी।बे-बंधन की ज़िंदगी।और-छोर रहित संसार।
गृहस्थी और नौकरी बहुत ज़रूरी है इस बात का मुझे अच्छे से भान है। मासिक रूप से बेंक बेलेंस में बढ़ोतरी और दिन में दो टाईम भोजन इन्ही दायित्वों के निर्वाहन पर मिले सुखद परिणाम है। वैसे भी इस जुग में अपने मन का कहाँ हो पाता है। सोच रहा हूँ कि आखिरकार कहीं भी नहीं जाने के इरादे के साथ ये शनिवार किसी शनि महाराज के मंदिर जाकर तेल चढ़ा आऊँ।:)
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