(स्पिक मैके राजस्थान के शीतकालीन राज्य स्तरीय सम्मेलन के अनुभव से जितना याद रहा)
लम्बे इंतजार के बाद आखिर पिछली 19 और 20 दिसम्बर की तारीख को छात्र आन्दोलन वाले स्पिक मैके की राजस्थान ईकाई का परिवार बीकानेर में आपसी बातचीत और कुछ प्रस्तुतियों के लिये इकट्ठा हुआ। हनुमानगढ़ से लेकर चित्तौड़गढ़ और कोटा से लेकर बाड़मेर तक के इलाके से लगभग 100 लोगों का ये मजमा, राष्ट्रीय संस्थापक और अध्यक्ष पद्मश्री आचार्य किरण सेठ की देखरेख में 2 दिन तक बीकानेर मे ही डेरे डाले रहा। शहर के बीचोबीच कृष्णा सदन में पूरे हुए इस समारोह के पहले दिन अपने पहले से कहे समय से आधा घंटे देरी शुरू हुआ उद्धाटन सत्र स्थानीय संभागीय आयुक्त श्री प्रीतम पाल सिंह, मंहत सोमगिरी जी महाराज और किरण सेठ के उद्बोधन से भरपूर बन पड़ा।
मारोह में बुलाये हुए स्थानीय संस्कृतिप्रेमियों के साथ-साथ कई नये रूप में स्पिक मैके आन्दोलन से जुड़ने के इच्छुक प्रतिभागी कुछ आशान्वित नजर आयें। पूरे 2 दिन चले इस जरूरी आयोजन में राजस्थान को पिछले दो तीन सालों से दिशा देते हुए गतिविधियों को चलाने वाले ऊर्जावान पूर्व राष्ट्रीय महासचिव अशोक जैन, राज्य समन्वयक आदित्य गुप्ता, राज्य सचिव और आयोजन संयोजक दामोदर तंवर, राज्य सहसचिव ऋषि अग्रवाल, प्रसन्न माहेश्वरी भागते दौड़ते दिखे।उद्घाटन के अवसर पर लम्बे लगने वाले लेकिन रोचक और केवल अनुभवों पर आधारित आचार्य किरण सेठ की जुबान से निकलने वाली बातें जीवन के आस-पास की ही लग रही थी। वहीं मंहत सोमगिरी जी का आध्यात्मिक चिंतनपरक उद्बोधन कुछ क्लिष्ट मगर बहुत काम का अनुभव हुआ। ऐसी संगत कभी -कभार ही मिल पाती है। औपचारिक और जरूरी बातचीत के जरिए संभागीय आयुक्त ने आन्दोलन की गतिविधियों को अपना भरपूर सहयोग देने का इशारा किया। साल भर की गतिविधियों पर आदित्य गुप्ता का औपचारिक भाषण हमेशा की तरह ही लगा। खैर कुछ इंतजार के बाद सभी को मंच और दर्शकों के बीच के अंतर से बाहर निकालकर जमीन पर गोलाई में बिठाकर परिचय सत्र की शुरूआत सभी को भा गई। बारी-बारी से सभी ने अपने इस संस्कृतिपरक आन्दोलन से जुड़ने की लम्बी कहानियों का छोटा-छोटा परिचय अपने अपने अंदाज में दिया। दोपहर के खाने के बाद सभी शाखाओं के मुखिया और प्रतिनिधि सदस्यों ने अपनी अपनी रपट पेश की जहां कई तरह के आपसी प्रश्नोत्तर से जरूरी काम-काज भी निपटाये गये। इस आयोजन के राजस्थान के चित्तौड़गढ़,कोटा, भीलवाड़ा, जोधपुर, पिलानी, हनुमानगढ़, बीकानेर, जयपुर, बाड़मेर, लक्ष्मणगढ़, चिढ़ावा, और श्रीगंगानगर जैसी 12 शाखाओं ने भाग लिया। आयोजकों के बहुत पहले से भेजे बुलावें के बाद भी बहुत सी शाखाओं का नही आना सोचने पर मजबूर करता है। दिल्ली से आचार्य किरण के साथ राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष विक्की श्रीवास्तव और 3 विद्यार्थियों की एक टीम भी आई थी। 2 दिनों तक परोसे जाने वाला भोजन घर के जैसा अनुभव और अपनापन दे रहा था, वहीं भोजन के दौरान अपनों से मिलने और बतियानें का आलम देखने काबिल रहा।
स शाम के वक्त जयपुर घराने की युवा और मेहनती नृत्यांगना स्वाति सिन्हा ने अपने संगतकारों के साथ कथक नृत्य की कई सारी खूबियों वाली प्रस्तुति दी। टुकड़े, परण और गति के साथ-साथ विद्यापति जी के द्वारा लिखित कविता पर भाव का प्रदर्शन सभी ने खूब सराहा। बीच-बीच में अपने बड़े गुरुओं को याद करते हुए स्वाति ने कई पुरानी चीजों की झलक भी बिखेरी। कथक के ठीक बाद पश्चिमी राजस्थान के उभरते लोक गायक सरदार खां लंगा और साथियों ने अपने ठेठ पुराने वाद्य यंत्रों और रियाज करती कलाकारी का लुभावना कार्यक्रम दिया। रात्रि भोजन के पश्चात सभी आने वालों ने जहां पारिवारिक माहौल का सहारा लेकर गीत, संगीत, गजल और चुटकुलों के जरिये अनौपचारिक सत्र में एक-दूसरे से परिचय किया वहीं कुछ जाने पहचाने लोगों ने अपने संबंधों को और ज्यादा मजबूत किया। दूसरे दिन फिर सुबह 10 बजे से 12 बजे तक लगातार रूप में 2 कार्यक्रम प्रस्तुतियों के रूप में हुए, जिनमें भोले-भाले लगने वाले मानस कुमार का वायलिन वादन और बरसों से विदूषी किशोरी अमोनकर जी के साथ संगत में गाने वाली नंदिनी भेडेकर का गायन सुनने को मिला। मानस कुमार का सीधा-साधा वादन एक अलग ही रूप में प्रेरित कर रहा था, राग का नाम तो मुझे अच्छे से याद नहीं रहा मगर हां अन्त में सुनाई लोक धुन बहुत बाद तक याद रही। नंदिनी जी के राग का नाम बताये बिना ही सीधे गंभीर और एकदम से अपनी और खींच लेने वाले शास्त्रीय गायन से मै और मेरा आस-पास बहुत प्रभावित हुआ। दूसरे दिन की दोपहर भी इधर-उधर की मगर जरूरी बातचीत के दौर से गुजरा। आखिर में आयोजक बीकानेरवासियों को बहुत सारी तारीफ के साथ आभार दिया। (लोग वापसी की योजना बनाने लगे) और जैसे -तैसे बचे हुए प्रतिभागियों के लिये बीकानेर के किले को देखने की एक व्यवस्था का ऐलान हुआ।
इस पूरे आयोजन में विद्यार्थियो की भागीदारी कम ही देखी गई वहीं पारिवारिक अंदाज में हुए इस अधिवेशन ने प्रतिभागियों का मन भी मोह लिया। दिनभर में होने वाली बातचीत के लिए भले ही थोड़ा कम समय मिल पाया हो लेकिन जरूरी काम तो पूरे कर ही लिये गये। बचे हुए काम इंटरनेट और फोन के जरिए निपटाने का मानस बनाकर प्रतिभागी अपने घरों की और लौटने लगे यही अधिवेशन का अंतिम पड़ाव था। खासतौर पर हुये निर्णयों में आगामी ग्रीष्मकालीन अधिवेशन कोटा/पिलानी के साथ ही शीतकालीन अधिवेश बाड़मेर में किया जाना तय हुआ। अधिवेशन में शाखाओं के लिए आगामी जनवरी माह में उत्सव के लिए कुछ कलाकारों को आंमत्रित करने की बात भी की गई जिनमें मेरी याददाश्त के अनुसार कथक नृत्यांगना प्रेरणा श्रीमाली, सितार वादक प.नयन घोष, बांसुरी वादक रूपक कुलकर्णी शास्त्रीय गायिका रूपान सरकार, ओडीसी नृत्यांगना विदुषी किरण सहगल शामिल हैं। और उत्सव में होने वाले सारे आयोजन उन्हीं सात महान कलाकरों को समर्पित किया जाना तय हुआ जिनके लिए विरासत 2009 समर्पित थी। अगले अधिवेशन की रपट लिखने का इंतजार करने की सोचता हुआ बीकानेर में हुए इस आयोजन की रपट यही पूरी करता हूँ।
माणिक राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य,स्पिक मैके
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