कल रात साढ़े आठ से साढ़े दस तक गुरु सत्यनारायण व्यास जी के घर मजमा लगाया।मैं,कनक जी,राजेन्द्र जी,रेणु दीदी,और मम्मीजी याने चन्द्रकान्ता जी व्यास।हाल में संपन्न आयोजनों की दिशा और दिशा पर खुलकर टिप्पणियाँ हुयी।अशोक जमनानी के उपन्यास खम्मा के क्राफ्ट पर बातचीत के साथ मीरा पर देर तक विमर्श चला।आजकल के पुरातन पंथी विचारकों को देर तक आड़े हाथों लिया।व्यास जी ने अपने मंच संचालनों के अनुभव में वक्ता लोगों की हाथाजोड़ी के अनुभव रुचे।किस किस मुद्दे पर बातें नहीं हुयी।विवेकानंद, मार्क्स, रैदास, गांधी से लेकर आज के रचनाकारों तक।ऐसी मुफ्त की संगत में हमने क्या पाया हम ही जानते हैं।आखिर में व्यास जी ने अपनी दो ग़ज़ल, दो कवितायेँ और कुछ झुमले सुनाये।बीच बचाव में हमने भी डींगे हांकी।गप्पोड़े मारने में हमारे साथियों से बनी ये छकड़ी कहीं से भी कम नहीं थी।ऐसी हर संगत में हमने लम्बे विमर्श के बाद विचारधाराओं की कट्टरता को कोसा ही है। दो बार की चाय के बीच हम कहाँ से कहाँ तक हो आये पता नहीं ।गज़ब का सफ़र रहा।बहुत सी शंकाएं खुली।मेल साफ़ करने का इससे अच्छा अवसर नहीं हो सकता था ।ज्ञान दुरस्त हो रहा है।लगता है इतने सारे पी एचडी धारी के बीच खुद को भी शोधार्थी जैसा समझने लगा हूँ। वैसे मैं क्या हूँ इसके बारे में मुझे कोई गलतफहमी नहीं है
28 फ़रवरी, 2013
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