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02 मई, 2010

(कविता) -वसीयत

कविता वसीयत 

लिख दी है वसीयत मेंने 
बेटे बेटी के नाम आज 
बढ़ा चढ़ा के क्या लिखूं 
अभी तलक का कमाया ही
साफ़ लिख दिया है करीने से
खुद ही सफेद पाठे पर नीली स्याही से

बँटवारा बराबरी का किया है मैंने
लड़ने की बात रखी ना बाकी
बड़े को ब्लॉगर,बेटी को ऑरकुट
पत्नी को फेसबुक थमा दी है
सोचता हूँ छुटके को ट्विटर देदूं,
पता सभी का एक रखा है
बदल बदल कर पासवर्ड  बाँट दिया

कर्जे में मकान किराया एक को
दूजे को बिजली की बाकियात मिली है
बेटी को अप्रकाशित उपन्यास हाथ लगा
और पत्नी को कवि सम्मेलनी कवितायें
छोटे पे मेरा दिल कुछ ज्यादा है
दूंगा उसे ही आदतें सारी मेरी अपनी

चाय की थड़ी पर गप्पेबाजी का आलम
जी-टॉक पर बातों का हूनर
और मिस कॉल मारने की मजबूरी
केवल दो उँगलियों से कि-बोर्ड चलाने की आदत 
भी उसी के हिस्से लिख दी है

सब कुछ तो लिख दिया है आज
रोजनामचे की तरह खरा-खरा
गाँव में पानी,बस और बिजली का इन्तजार
जानबुझ  कर दिया है शहर  में रहते बड़े बेटे को
सरकारी ऑफिसों की चक्करबाजी का गणित और
धड़ेबाजी वाला  समाजशास्त्र किसे दूं
समझ से परे लगता है इस पीढ़ी को

वसीयत  के ख़ास हिस्से को पढ़ने के लिए 
होता  नहीं कोई तैयार खुदा जाने
जहां लिखा है मेंने  बाप के मरणभोज में
बेचे पुस्तेनी मकान का हिसाब अब भी
और लिखा है कम उम्र में मां बनने से
मरी पहले वाली पत्नी की कहानी

सादे कागज़ की किनोरें गीली होने लगी है
वसीयत हाथ से ढ़ीली होने लगी है
दुःख  ज्यादा और सम्पति कम लिखी है मैंने
किराए का मकान और मालिक की धमकी
अभी लिखनी बाकी है वसीयत में मेरे
पत्नी को घर छोड़,महिला मित्रों से लम्बी बातें
लिखू कैसे डर लगता है थोड़ा सा

औरों की थाली में ज्यादा नज़र रखने 
वाली आँख़ें कौन नेत्र दान में लेगा मेरी
सोच रहा हूँ बैठा-बैठा
पड़ौसियों से किया अदाकारी का व्यवहार
और उधार के पैसों पर बेफिक्री की ज़िंदगी
इसी वसीयत का हिस्सा बना  है

तकिये के नीचे कुछ नहीं है अब 
तिजोरी की चाबी जैसा
ज़मीन में दबा नहीं रखा कुछ भी खोदने को
मेरे पास तो रही बाकी 
ज़िरो बैलेंस वाली संस्कृति

कोयले और चॉक से लिखे नामों सहित ऐतिहासिक इमारतें
लिख दिया  है आने वाली पीढ़ी के नाम 
प्लास्टिक की थैलियों से अटा पड़ा शहर का तालाब
नदी,नाला,सड़कें और 
समारोह में उड़ती फिरती प्लास्टिक की गिलासें
नास्ते के भरोसे आयोजनों में मेरी भागीदारी
और अखबारी खबर में मेरे  नाम
वाली कतरनें संभाल रखी है
वसीयत में देने को

लेने को राजी नहीं कोई क्या करें
कुछ भी बाकी नहीं रखा है
माफ़ करना मेरे अपनों 
ज्य़ादा कमा नहीं पाया 
लिखने को वसीयत मेरी
वसीयत पूरी होती है 

*माणिक *

 
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