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15 फ़रवरी, 2011

बिम्ब:-अतीत के पन्नों से-1

बिम्ब:-अतीत के पन्नों से-1

कोई तो है दूर की लागती का
जो करीब लगता आज भी मन के
गूंथा करता था पल-पल की यादें
बुना करता था सच के रिश्ते
बातों की आदी-तिरछी  चलती सलाइयों से
कभी पाठशाला की फाटक के पास
तो कभी जा बैठता था खेत की मेड़ पर
यूं उकेरता था बैले
कभी कनेर के फूल
बनकर कुशल चितेरा
मन के सपाट कागज़ पर
जीवन की महक दबा कर रखता था
अपनी सुघड़ मुठ्ठियों में
लुटा देता था सारा आनंद मेरे हित
एकटक देखता था किसी एकमात्र अपने की मानिंद
मुंडेर पर कुहनी टिकाए देर तलक
मेरे घर-आँगन से गली के छोर तक
सबकुछ उसकी नज़र की मिलकियत में था
याद है आज भी कि
पसंद थे उसे स्कूली युनिफोर्म में मिले
लाल रिब्बन से गूंथे फुग्गे
जो मेरी दोनों चोटियों पर फबते-इतराते थे
बीता बचपन,दिन बीते अब सारे
बीत गया वो झांकने-ताकने का दौर
अपलक आँखें लिए ढूंढता है वर्तमान
फिर भी एक आस थामे
कि पलटता है आज फिर अतीत के पन्ने बारी-बारी
 
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