फुदकती गिलहरियों को हथियाने
की लगातार और बेकार कोशिशें
दुस्साहसों को ठेंगा दिखाती सफलताएं
अतीत ही हो सकती थी
कि भोर होते ही बिस्तर छोड़
बचपन में बच्चें चल पड़ते थे
हाल मौहल्ले में ब्याही कुतिया को
लापसी खिलाने
पिल्लों के पास जा डटते थे
बिना दांत मांझे,मूंह धोए
वो प्यार दुलार और गुत्थम-गुत्थी
सबकुछ बीती बातें हैं कहने को
उभरा दर्द पुराना
जो पलटे पन्नें अतीत के
भांत-भांत के खेल-खिलौनों से उबकते
आँगन में मांडने-सा बचपन फबता था
मीठा नीम,तुलसी और बारहमासी
सबकी छाया के सहारे अपना घर
बैल की माफिक छत चढ़ता था
काम चलता था आस-पड़ौस का
आपसदारी के आंकड़ों से
जो आसमान छूते थे तब
सीना फुलाए घूमता था आपसी लेनदेन
बिना लाभ का पूरा और पक्का
घर-घर आवन-जावन था
अब बंद हुआ सब कुछ अतीत के बोरे में
अनकही प्रेमपातियां पड़ी रह जाती थी
यदाकदा छप जाती कुछ भावों सहित
उतर आती कागज़ पर
कि फिर
पेड़ में अटकी पतंग-सी देर तलक
पकती थी जेबों में पातियाँ
डाकवाले लाल डिब्बे तक जाते हाथ
कांपते-धूजते लौटते फिर घर को
बचा न ऐसा कुछ भी अब तो
खाली खाते मिले वर्तमान की बही में
आज फिर भींत से उतरते लेवड़ों की मानिंद
परतें अतीत की खुलती जाती
जो थथेड़ दी थी हमने भूतकाल की दिवार पर
ख़ास यादें दिखती उपलों-सी उभरी
थोड़ी ऊंची मुंडेर के कौने में कुछ ऊपर
दिल करता है लौट जाएं फिर
उसी फुरसत में कि
जहां बने,रचे और सजे अतीत के पन्ने
फड़फड़ाते हैं आज फिर
अतीत से वर्तमान तक की यात्रा बहुत गहरी है.. बहुत सी यादें , बहुत से मोड़.. बहुत से चरित्र है इस सफ़र में
जवाब देंहटाएंManik ji aapki is kawita ne dil chu liya.
जवाब देंहटाएंBachpan main gilahriyo ke peeche bhagne ka sara ka sara drishy jaise sakar ho gaya. kash aik baar phir se vaisey hi bhag sakte un gilahriyo ke peechey jo kabhi pakad main nahi aati
bahut sundar kawita ..... badhai
aapka....... ashok