अतीत में जाते रास्तों वाली
एक ही फिल्म जो
दिखाती है वर्तमान का उघड़ा हुआ सच
आती आँखों के समक्ष बारम्बार
मन दहलाती सुबहें शनिवार की
जों आते शनिमहाराज का तेल माँगने
बच्चे भारत देश के
दया धरम के ज़िंदा होने की साप्ताहिक पुष्टी के साथ
या कि जताने
कौन कहता है कि
हट्टे-कट्टों को भीख नहीं मिलती
हाँ बचपन में पिताजी के कहे पर
तेल देते रहे हम भी अतीत में
वो लाल तिलकधारी बाबा
पंचांग कांख दबाए आता था
रटी हुई कुछ भविष्यवाणियाँ
चिपकाए जुबां पर
आदमी दिखा कि उलट-पलट सूना देता
मौहल्ले नापते थे देहरियाँ गिनते एकएक
याद है इन छंटे हुए बन्दों में बंटे हुए गाँव
माँ,पिताजी,बहन और बड़ भैया सब मिलकरमौहल्ले नापते थे देहरियाँ गिनते एकएक
अब सब दारोमदार बच्चों पर है
बच्चे जो जल्दी में रहते हैं
लाल टीका भूल से लगाते नहीं अक्सर
पंचांग कांख दबाने की कहाँ फुरसत उन्हें
गिनती की गालियाँ रखी है होंठों के ठीक पास
जो दानपुण्य के बदले काम आती कभी
जो दानपुण्य के बदले काम आती कभी
शनिवार की भोर मतलब
देहरी पर एकदम काली शक्लें
कहती है बातों में मुझे यूं कई बार कि
सवेरे जल्दी निकलने की सोचकर
शुक्र की रात से ही बैठा रखे थे शनिमहाराज
कड़ेदार टोकरे में पाड़े पर
नसेड़ी पिताजी और जुआरी माँ
के खातिर बचपन हवन है जनाब
जी कहता है उनका कि
आएगा कभी तो कोई शनिवार
आएगा कभी तो कोई शनिवार
जो मुक्ती मिलेगी घर के शनिदेवों से
अतीत में शनि महाराज से भय था जिनको
अब भय पंगु होते बच्चों की बदहाली से
जो मंगल,गुरु,शुक्र और सोम को
चले आते हैं आस बाँध
बदले हुए चौले में अधखुला दर्द छिपाते
अपनी घुमक्कड़ी के आगे
शत प्रतिशत नामांकन की बाट जोहते
स्कूल के हथकंडों को ठेंगा दिखाते
वे बच्चे मिल जाएंगे यहीं कहीं
अपनी घुमक्कड़ी के आगे
शत प्रतिशत नामांकन की बाट जोहते
स्कूल के हथकंडों को ठेंगा दिखाते
वे बच्चे मिल जाएंगे यहीं कहीं
विकास के सफ़ेद आंकड़ों पर
बारबार कोलतार से गरीबी गोदते हुए
जान पड़ते हैं किसी मौड़ पर
मिले पहचान के आदमी-से
बालश्रम पर की हुई हज़ारों घोष्ठियों के निष्कर्ष
को मटियामेट करते
जहां मिल जाते है
शनि महाराज के बन्दे
शनि महाराज के बन्दे
हवा हो जाती है सभागारों की जुगाली
झकझोर दी आपकी कविता मानिक भाई.. विद्रोही स्वर आपका अच्छा लगता है...
जवाब देंहटाएंमानिक भाई ,
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
सुंदर अभिव्यक्ति , अच्छी रचना !
साधुवाद !
bahut hi marmic parantu satya ....
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