अब सिलसिला चलेगा-सुबह की फुरसत में सूफी संगीत जो हमारे आकाशवाणी के केंद्र अभियंता जितेन्द्र सिंह कटारा से बहुत बड़ी मात्रा में मिला.शाम की फुरसत में पत्र-पत्रिकाएँ पढ़ना-घोटना-कतरना..कोम्बीनेशन कैसा रहेगा?.शाम का स्लोट बरकरार रहेगा मगर सुबह के स्लोट में मौसमी रोज़गार की तरह संगीत के प्रकार बदलते रहेंगे.संगीत और किताबें जीवन में मैं बहुत ज़रूरी समझता हूँ. ये एक कोशिश है,कोई पत्थर की लकीर नहीं.जब तक ग्रहस्ती में आराम है सिलसिला जारी रहेगा.
आकाशवाणी में शाम के समय तीन-चार रिकोर्डिंग से पाला पड़ा.पहली में किसान था सौभाग्य से बचपन का मित्र भी,मगर मुझे उससे रेडियों के लिहास से खेतीबाड़ी जैसे विषय पर बातचीत करना नहीं आया.साथी कोम्पियर ईश्वरचंद मेनारिया ने अफीम की कास्त से जुड़ी बातें की.उस दौर में मेरी कम जानकारी के लिहाज़ से मैंने अपने आप को किसान से बातचीत करने के लायक भी नहीं समझा.दूजी बातचीत मुर्गियों में रोग नियंत्रण जैसे किसी विषय पर थी,एकदम विलग विषय.सामने डोक्टर साहेब थे.मगर मैंने बातचीत करने के बजाय उसे रिकोर्डिंग के लिए कंसोल पर बैठना मुनासिब समझा.मगर हाँ अँधेरे के वक्त अपनी नौकारे पूरी कर आए दो परिचित और जानकार लोगों के आते ही भूखे पेट होकर भी मैं चुस्त नज़र आने लगा.डॉ. रेणु व्यास (हमारी रेणु दीदी )की वार्ता जिन्होंने 'मौन ही श्रेष्ठ है' जैसे विषय पर भी पांच पेज लिख डाले.गज़ब.रिकोर्ड किए.इसी बीच उनके पिताजी और हमारे गुरु (सपाट और कड़वी बातों के शहंशाह ) डॉ. सत्यनारायण व्यास अपने जाने-पहचाने अंदाज़ में बतियाते रहे.ज्ञान की पुडकियां पकड़ाते हुई कई झुमले सुना ही रहे थे कि तब ही अग्रज साथी दिखने और बतियाने में सौम्य हरीश लड्ढा आ गए(उन्हें जिला कोषाधिकारी के पद पर होने के बजाय उनके स्वभाव और वाकपटुता के कारण भेंटवार्ता के लिए बुलाया गया था.)उनसे 'जीवन में व्यक्तित्व के मायनों' पर ग्यारह मिनट ठसाठस बात हुई.हर विषय,हर आदमी हमारी फ्रीक्वेंसी से मेल खा जाए कोई ज़रूरी नहीं.
एक ही शाम में सतरा भांत के लोगों से एक साथ मिलना,बतियाना,कान लगाना,ताकना,फोटू खींचना,ज़रूरी कागजात तैयार करना,दस्तख्वत करवाना,सभी काम एक साथ.यहाँ भी इतने काम करने के लिए ग्रहस्ती से आराम की स्थिति लागू होती है.आओ गृहस्ती को ही पहले ठीक कर लें,फिर ये सारे काम इत्मीनान से करें ,जो मैंने आज दिनभर में किए.
आकाशवाणी में शाम के समय तीन-चार रिकोर्डिंग से पाला पड़ा.पहली में किसान था सौभाग्य से बचपन का मित्र भी,मगर मुझे उससे रेडियों के लिहास से खेतीबाड़ी जैसे विषय पर बातचीत करना नहीं आया.साथी कोम्पियर ईश्वरचंद मेनारिया ने अफीम की कास्त से जुड़ी बातें की.उस दौर में मेरी कम जानकारी के लिहाज़ से मैंने अपने आप को किसान से बातचीत करने के लायक भी नहीं समझा.दूजी बातचीत मुर्गियों में रोग नियंत्रण जैसे किसी विषय पर थी,एकदम विलग विषय.सामने डोक्टर साहेब थे.मगर मैंने बातचीत करने के बजाय उसे रिकोर्डिंग के लिए कंसोल पर बैठना मुनासिब समझा.मगर हाँ अँधेरे के वक्त अपनी नौकारे पूरी कर आए दो परिचित और जानकार लोगों के आते ही भूखे पेट होकर भी मैं चुस्त नज़र आने लगा.डॉ. रेणु व्यास (हमारी रेणु दीदी )की वार्ता जिन्होंने 'मौन ही श्रेष्ठ है' जैसे विषय पर भी पांच पेज लिख डाले.गज़ब.रिकोर्ड किए.इसी बीच उनके पिताजी और हमारे गुरु (सपाट और कड़वी बातों के शहंशाह ) डॉ. सत्यनारायण व्यास अपने जाने-पहचाने अंदाज़ में बतियाते रहे.ज्ञान की पुडकियां पकड़ाते हुई कई झुमले सुना ही रहे थे कि तब ही अग्रज साथी दिखने और बतियाने में सौम्य हरीश लड्ढा आ गए(उन्हें जिला कोषाधिकारी के पद पर होने के बजाय उनके स्वभाव और वाकपटुता के कारण भेंटवार्ता के लिए बुलाया गया था.)उनसे 'जीवन में व्यक्तित्व के मायनों' पर ग्यारह मिनट ठसाठस बात हुई.हर विषय,हर आदमी हमारी फ्रीक्वेंसी से मेल खा जाए कोई ज़रूरी नहीं.
एक ही शाम में सतरा भांत के लोगों से एक साथ मिलना,बतियाना,कान लगाना,ताकना,फोटू खींचना,ज़रूरी कागजात तैयार करना,दस्तख्वत करवाना,सभी काम एक साथ.यहाँ भी इतने काम करने के लिए ग्रहस्ती से आराम की स्थिति लागू होती है.आओ गृहस्ती को ही पहले ठीक कर लें,फिर ये सारे काम इत्मीनान से करें ,जो मैंने आज दिनभर में किए.
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