पिछले चार-पांच दिन यात्राओं और मंथन/चिंतन में गुज़रे.एकाग्रता की कमी डायरी लेखन के हित मुनासिब नहीं समझ मैंने कुछ नहीं लिखा.लम्बे एकलखुरे जीवन में ननिहाल की एक रिश्तेदारी में एक पूरा दिन खरचना अखरा नहीं.ऊर्जा की नई हीर खुली सी अनुभव हुई.बीते दिन में ही मेरी एक ही गलती से मेरे काम के परिणाम में उभरी खामी ने मन में दो दिन तक अस्थिरता ला दी,बहुत समय तक सोचते रहा कि एक खामी भी भला कितना विचलन दे जाती है.कभी कभी लगता है कि मैं अतिरिक्त भाव के साथ संवेदनशील हूँ.
इन दिनों चितौड़ शहर तो मुझे बिना बदलाव का लगा मगर मेरे अपने ही भीतर मैंने इन बीते चार दिनों में बहुत से बदलाव देखे.इंटरनेट पर घंटों के सफ़र के बाद भी कुछ भी बड़ा और सार्थक काम नहीं होना.छुट्टी के दिन का यूंही बीत जाना.किले में घुमक्कड़ी का शोख पूरना, स्कूल के काम में कुछ अधिक ही मन लग जाना.किताबों में डूबे रहना.संगीत के प्रभाव में बहुत गहरे तक चले जाना.खैर अच्छी बात ये रही की सारे के सारे बदलाव मेरे मन के अनुरूप ही निकले.
युवा फड़चित्रकार कल्याण जी जोशी से होने वाली एक ज़रूरी मुलाक़ात अचानक टल गई.शहर में ही हुई एक कवि गोष्टी में मैं नहीं बुलाने के कारण जा नहीं सका.बाद में अखबारों में छपी करतां से जाना कि बड़े बड़े कवि पाठ कर गए.गोष्टी का प्रयोजन बने रतन आर्य आर्य जी,चार साल पहले गुज़रे संगीतविद रतन लाल आर्य मेरे भी गुरु रहे.मगर उनके नाम के आगे साहित्यकार शब्द अखबार में छपा हुआ पढ़कर अचरज हुआ,या तो उनका लिखा मैं पढ़ने से अबतक मरहूम ही रहा या कि फिर आजकल किस शब्द का कहाँ ठीक उपयोग होगा ये सेन्स समाज से जाता रहा.रतन जी आर्य की सादगी मुझे बहुत याद आती है,मगर अफसोस मैं उनकी याद में हुए आयोजन में जा नहीं सका.लगने लगा है कि शहर अब बड़ा होता जा रहा है.वैसे भी मुझे अपनी कविता पढ़ने हेतु कहीं नहीं जाना पड़ता,जब भी मन होता है अपने पसंदीदा मंच रेडियो पर पढ़ आता हूँ.
मौसम में अचानक आई तेज़ सर्दी ने झोंपड़-पट्टियों में रहने वालो पर कितना कहर ढ़हाया होगा,सोचके भी थर्राता हूँ.यहाँ अपने कमरे में जब मन हो चाय उकाल लेता हूँ.उनका क्या जो खुले आसमान में सोए रात बिता रहे हैं.कई गरीब बच्चे आज भी सुबह कचरे बीनते हुए ठिठुरते हैं.तो दिल खूब दुखता है.पेट में बहुत मरोड़े आते रहते हैं जब विचार लगातार मानस में ठक-ठक करता है,कुरेदते हुए मेरी जीवन यात्रा पर बार-बार प्रश्न चिन्ह लगा कर भाग जाता है.शहर में रोज़ मुझे ठिठुरते भिखारी भूखो मरते दिखे.कोई अचरच नहीं मगर दिल तब दुखता है जब जवान आदमी/औरतें ही भीख माँगते दिख जाते हैं.
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