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08 फ़रवरी, 2012

मैं और मेरा आकाशवाणी:भाग-दो


मैं आकाशवाणी चित्तौड़से सालदो हज़ार; मेंबतौर आकस्मिकउदघोषक जुड़ाथा. सालदर सालअनुभव औररूचि बढ़तीगयी.मोबाईलमें ऍफ़.एम्.कल्चरआने सेइसमें एकनई जान गई.मतलब हमारीरूचि काये कामजारी रहेगाये बातहमें अनुभवहुई.सबसेबड़ी बातइस प्रसारभारती सेचलते आकाशवाणीप्रसारण मेंहर भांतके श्रोताओंका ख़यालरखा जाताहै.यहीविचार हमआपसी बहसोंमें पूरेदबाव केसाथ रखतेभी रहे.साल २००६के मईका महीनाथा,रेडियोपर निकलीआकस्मिक उदघोषककी भर्तीका विज्ञापनसीधा कानमें यूंघूस गयाजैसे उसीविज्ञापन कीबाट जोहनेको ईश्वर  ने कान दीएहों.हालांकिमेरी ज़रूरीस्नातक योग्यतापूरी किएहुए भीमुझे चारसाल बीतगए थे,मगर अफसोसतब तककोई गुरु/ज्ञानी नहींमिला जोइस पतेतक पहुँचासकता,हाँवही पताजिसे हमबाद मेंयूं रटा/रटाए भाषतेथे गोयाकेंद्र निदेशक,आकाशवाणी,गांधी नगर,चित्तौड़गढ़.

बस फॉर्म भरा,स्वर परीक्षाकी तारीखका इंतज़ारशुरू,वहाँहमारे भीमिलने वालेथे लक्षमणजी व्यास,जिनसे पल्लवद्वारा आयोजितगोष्ठियों में हुआ परिचित मुझेकिसी सगेसंबंधी सेकम नहींलगता था.उस दौरके मेरेसबसे करीबस्पिक मैकेआन्दोलन मेंभी लक्ष्मणजी काआना जानाथा.मुझेजाने क्योंकार्यक्रमों को संचालाते हुए चारसाल बीतगए,तरह बहुतबातों औरविचारों केचलते मैंअपने चयनको लेकरबिलकुल भ्रममें नहींथा.सबकुछतय मानरहा था.आखीर किसीकी शादी  की तारीख कीतरह हीहमारी भीस्वर परीक्षाका मुबारिकमौक़ा आया.उसी दिनपता चलाकि हमकितना गलत/सलत उच्चारतेहैं.खैरसहायक केंद्रनिदेशक कीपदवी उसज़माने मेंडॉ. इंद्रप्रकाश श्रीमालीजी केपास थी. एक एककरके सबकोभाने  के बाद हम आखिर आकाशवाणीहेतु चयनितहो हीगए.अच्छेसे यादनहीं मगरहाँ मेरेसाथ वालेबेच मेंनवीन शर्माका भीचयन हुआथा.कुछलड़कियां भीचुनी गयीथी,नामएक भीयाद नहींरहा.मगरउनमें सेअधिकाँश तोघर/ग्रहस्तीऔर बादके समयमें शादीके ब्याहके चलतेसाथ छोड़गयी.

अजीब लगा किआवेदन केसाथ तीनसौ रुपयेदिए.फिरवाणी जैसेकोर्स केलिए एकहज़ार रुपयेदिए.अभीट्रेनिंग बाकीथी,परफेक्शनआना बहुतदूर औरड्यूटी केबारे मेंसोचने काहमारे बसमें नहींथा.वाकईलम्बी प्रक्रियाथी येपूरा मामलावैसे भीपैसों सेएक बड़ेमंच केगौरव सेजुड़ा था,जहां सेहम अपनेमन कीबात बेधड़ककह सकतेथे.सालोंमाईक परबोलते हुईहोकर भीहम इसआकाशी आवाज़ेदेते वालेमाईक सेडरे हुएथे.जहांतक मेरीयाद कमकरती हैहमारी ट्रेनिंगडी.आर.बामनिया जैसेग़दर आवाज़के धनीअधिकारी केनीचे चले.ये वहीबामनिया जीथे जोरात साधेनौ सेरात दसतक काविविधा कार्यक्रमदिया करतेथे.सबसेलम्बी अवधीतक चलीट्रेनिंग कोलेकर हमसभी उसऑफिस मेंचर्चा मेंथे,यातो हमढोर थेया किफिर ट्रेनिंगके बादका .के. प्रमाण-पत्र देनेमें बामनियाजी नेदेर करदी.खेरकोई अगस्तका महीनातय हुआजब हमनेपहली ड्यूटीपर पैसेबना.वहींहमारा अपनेआकाशी श्रोताओंसे पहलापरिचय हुआथा.एकऔर बातकहीं हमबूल नहींजाए कितब हमशादीशुदा नहींथे.बिलकुलफक्कड़. ड्यूटीके बादघर जाकरखाना खानेके बजायसीधा ढ़ाबेपर जानातय होताथा.उनदिनों हमारेऑफिसर मेंबीकानेर मूलके स्थायीउदघोषक प्रकाशखत्री जीऔर किसानवाणीका कामसंभालते हुएसीताराम जीमहावर थे. खत्री जीके सानिध्यमें हमआज भीसीख रहेहैं.मगरकुछ समयसे सीतारामजी यहाँसे डूंगरपुरचले गए.एक थीटेड़ी गरदनके शास्त्रीयसंगीत सेजुड़े अधिकारी,माफ़ करनानाम नहींजानता मगरज्ञान केमामले मेंबड़े तेज़थे.एकखेल/खिलाड़ीदुनिया केकपिला जीथे.उनकाभी स्वास्थ्यसे जुड़ाकार्यक्रम बड़ा अजीब और न्याराही था.

इस नए काममें सीखनेकी ललकहमेशा सेरही है.शुरुआत केउन दिनोंमें सबसेकठीन होताथा सजीवफोन-इनया फिरफोन-इन-आपकी-फरमाईश,ऐसे बड़ेकार्यक्रम को खत्री जी याफिर हमारेवरिष्ठ साथीही हाथलगाया करतेथे. उनदिनों हमारेवरिष्ठों मेंकिरण आचार्य,प्रीति पोरवाल,अब्दुल सत्तारहुआ करतेथे,अबभी वेइसी केंद्रपर जारीहैं.हमआज भीउनके साथऔर समानांतरसीख रहेहैं.हमजैसे नएनवेले उदघोषकआपकी पसंदजैसे ख़तपढ़ने याकि फिरसोमवारिया और बुधवारिया फिल्म संगीतके फ्लेटकार्यक्रमों के लिए मुफीद उदघोषकथे.समयगुजरते हुएहमने भीएल.पी.रिकोर्ड केसाथ हीटेप चलाना,बजाना सीखा,उसी दौरमें कम्प्यूटरआया,मैंथोड़ा बहुतचलना जानताथा,उसकाफ़ायदा मुझेवहाँ पूरीतरह मिलाभी.साथीनवीन सारथीकम्प्यूटर से बहुत डरता था,अधर-अधरहाथ चलताथा.बड़ेमझे थेउन सभीदृश्यों केभी.खैरबाद मेंतो सबपारंगत होगए.ज़मानेके साथटेप,एल.पी.सबचल बसे,अब तोसभी तरफकम्प्यूटर खड़े हुए हैं,समय सेभी बहुतआगे.एकनहीं.पांच/: तककी संख्यामें.

वहाँ काम करनेवालों मेंकार्यक्रमों के अनुसार समूह बनेहुए थे. किसानवाणी,महिला जगत,युववाणी ऐसेही कुछजो आजभी बदस्तूरजारी है.अफसोस हमयुवा होकरभी युववाणीमें नहींरह सके.शुरू सेही उदघोषकबन गए.हालांकि बादमें  जाना कि ये ही सबसेअच्छा जॉबप्रोफाईल था.समय केसाथ बढ़तीहुई ज़िम्मेदारीऔर पगारदोनों दिलखुश करतीथी.इन्द्रप्रकाश श्रीमालीजी जैसेलिख्खाड़ किस्मके इंसानसे हमनेउनकी आवाज़के साथही उनकाअंदाज़े बयाँचुराया/सीखा.तब तकउनकी कईकिताबें छपचुकी थी,कई उसदौर मेंलिखी भीजा रहीथी.मीराभजनों कोलेकर उन्होंनेबहुत बड़ाकाम कियाथा.उनकीआवाज़ हमनेइंदिरा गांधीस्टेडियम मेंसुनी जबवहाँ केलगभग स्थायीउदघोषक रामलाल जीखत्री गुज़रगए थे,बाद केसालों मेंबहुत हदतक गणतंत्रदिवस  और आज़ादी के उत्सव केसंचालन श्रीमालीजी हीकिया करतेरहे.कोईपूछे नासही मगरमैं यहाँज़रूर लिखनाचाहूँगा किहमारे इसपूरे जॉबप्रोफाईल मेंप्रकाश खत्रीजी केउन दिनोंके कार्यक्रमऔर उनकाव्यक्तित्व बहुत प्रभावित करता रहाहै.उनकाअंदाज़ औरकिसी काहो भीनहीं सकता.प्रकृति केसाथ कीउनकी जुगलबंदी,जुड़ाव औरउनके विलगविचार हीउन्हें सबसेअलग करतेदिखते हैं.संगी साथियोंसे हमबहुत कुछसीखते हुएआगे बढ़रहे थे.आकाशवाणी मेंनित-नएवार्ताकारों और भेंटवार्ताओं ने बहुतसीखाया हैं.

अगला भाग यहींज़ल्द लिखूंगा........

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