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12 फ़रवरी, 2012

बचपन-एक

यादें काम करना बंद कर दे इसके पहले कुछ बचीकुची यादें यहाँ लिखना चाहता हूँ.जन्म ननिहाल भीलवाड़ा के हमीरगढ़ में हुआ,जहां के मूल रूप से रहने वालों में हिंदी समालोचक डॉ. सत्यनारायण व्यास हुए हैं.ये वही हमीरगढ़ है जहां हमने बचपन का आधा हिस्सा गुज़ारा.ये वही हमीरगढ़ है जहां एक बड़ा तालाब,संस्कृत प्रवेशिका स्कूल है,जहां के स्टेशन वाले भैरू जी फेमस हैं.ये वही हमेरागढ़ था जहां हमारे नानाजी आत्माराम जी का छोकरे में नाम चलता था,और मोहल्लें में एक भी शादी ऐसी नहीं होती जहां हमारे नानीजी नारंगी बाई ने गीत नहीं गाए हों.सादी,तखतपुरा,मंगरोप,ओज्याड़ा,बरडोद जैसे गांवों के नाम कानों में गूंजते हुए  ही हम बड़े हुए थे.ये वही हमीरगढ़  है जहां छोटे डूंगर के ऊपर बहुत छोटा किला बना है. इसी हमीरगढ़ में दूसरे डूंगर पर एक चामुंडा माता का मंदिर बना है.यहीं हमने साईकिल चलाना,पैसे चुराना,ढीला गुड खाना,खेत से आम तोड़ कर लाना और जीजी,मामा,नानी कहना सीखा.नानाजी को देखने/जानने वाले दौर में हम पैदा नहीं हुए थे.नानी के कंजूसी के किस्से सालों तक सुने,उनके साथ बहुत सा वक्त गुज़ारा भी.मेरे नानी को कहानियां कहना कभी नहीं आया.हाँ याद है जिस दिन गाँव में कहीं जीमने जाना होता था हम सभी साथी दोपहरी का खाना नहीं खा पाते थे.नानी कहती 'अभी खा लेगा तो जीमने में क्या खाएगा?'.नानी के जोर से पादने पर हम सभी नानी के साथ ही ठहाका मार कर हँसते थे.

सब बातें बचपन के खाते में ही सिमट गयी है.तीन मामा के सभी लडके-लड़कियां,गरमियों की छुट्टियों की खेर नहीं इतनी धमाल करते थे.गाय-भैंस खेत ले जाना फिर लाना,बांधना,घर का दूध,छाछ,आमरस चटकारना,खेत पर पूरबज बावजी के रातिजगे सब याद है आज भी जैसे कल की ही बातें हो.सिजारे दिए खेतों पर जानवरों के लिए भारा लेने जाना हो या फिर मामाजी की दूकान से शाम होते होते चांदी-सोने के जेवरों की पेटी दूकान मंगल करते ही घर लाना हो.मिलझुल कर काम होते थे.अफसोस सब बीत गया. नानी जी गुज़र गयी.मामा के लडके काम धंधे में लग गए.लड़कियों की शादी हुई सबके बच्चे बच्ची हो गए.दो मामा भीलवाड़ा चले गए.बीच वाले  मामा हमीरगढ़ में ही अपने कामधंधे के चलते जम गए.जब भी हमीरगढ़ जाता हूँ. वहाँ की गलियों से सारी की सारी यादें उपरतड़ी याद आने लगती है.-

लगातार..........

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