दरारों के दौर में
देख रहा हूँ मैं इस
दरारों के दौर में भी
आज अखंड खड़ी हैं
वो इमारतें किले की
अकेली लगती है रात के
अँधेरे में इशारों से
अपनों को बुलाती हुई
वो इमारतें किले की
न बोलती न चालती
ठेलते हुए बुढापा खुद
अकेले ही जीती ओ जागती
वो इमारतें किले की
बीता समय समेटकर
रखती हैं ज्यों के त्यों
तथ्य सारे बांटती ओ बखानती
वो इमारतें किले की
गुज़रा वक्त कुछ हद
ढाबती,संभालती वो
दिन-रात महमानती
वो इमारतें किले की
गुज़रे ज़माने राजती थी
वैसी न अब वो गाजती
चुपचाप ही बस श्वांसती
वो इमारतें किले की
सब जानती ओ सोचती
सब मन की आशा पूरती
न टोंकती न रोकती
वो इमारतें किले की
दिनभर नुमाईशती खुद को
रातों ही बस वो आरामती
यूं रोवती और हांसती
वो इमारतें किले की
अपने पैरों खड़ी हुई हैं
करमों को सबके जानके
निगलती ओ चुपचापती
वो इमारतें किले की
शोषक-पोषक सब भानती
पथरीली हैं मगर दिल सहित
येनकेन जीवन जुगाड़ती
वो इमारतें किले की
देख रहा हूँ मैं इस
दरारों के दौर में भी
आज अखंड खड़ी हैं
वो इमारतें किले की
अकेली लगती है रात के
अँधेरे में इशारों से
अपनों को बुलाती हुई
वो इमारतें किले की
न बोलती न चालती
ठेलते हुए बुढापा खुद
अकेले ही जीती ओ जागती
वो इमारतें किले की
बीता समय समेटकर
रखती हैं ज्यों के त्यों
तथ्य सारे बांटती ओ बखानती
वो इमारतें किले की
गुज़रा वक्त कुछ हद
ढाबती,संभालती वो
दिन-रात महमानती
वो इमारतें किले की
गुज़रे ज़माने राजती थी
वैसी न अब वो गाजती
चुपचाप ही बस श्वांसती
वो इमारतें किले की
सब जानती ओ सोचती
सब मन की आशा पूरती
न टोंकती न रोकती
वो इमारतें किले की
दिनभर नुमाईशती खुद को
रातों ही बस वो आरामती
यूं रोवती और हांसती
वो इमारतें किले की
अपने पैरों खड़ी हुई हैं
करमों को सबके जानके
निगलती ओ चुपचापती
वो इमारतें किले की
शोषक-पोषक सब भानती
पथरीली हैं मगर दिल सहित
येनकेन जीवन जुगाड़ती
वो इमारतें किले की
bahut kamal Manik ji .. ek peeda ek dard ko alfaz de diye khoob
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