आज एक तथाकथित कवि जैसे आदमी के घर गया.बीस मिनट की मुलाक़ात में पानी तक के लिए नहीं पूछा.मतलब किताबें लिखना,छपना-छपाना,पढ़ी जाना,सब धूल बराबर.संवेदनहीन,घू खाती मति लिए.मैनर्स के नाम पर ज़ीरो अंक.बड़ा सरकारी ओहदा मगर मेरी नज़र में साक्षात पशु.एक बार फिर ठेस लगी.लग रहा है लोगों की छंटनी शुरू करनी पड़ेगी.
19 अप्रैल, 2012
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