पिताजी दूजे शहर(अपने ससुराल) से मेरे शहर(बीते कुछ सालों से यहीं का हो गया हूँ.) आए.हमेशा की तरह रेलगाड़ी से.कम किराए में ज्यादा सुविधाजनक .रेलों का आगमन और प्रस्थान समय भले उनकी मर्जी का न रहा हो.मेरे इंतज़ार में खड़े पिताजी को देर तक मैंने दूर से देखा.पहली बार लगा कमर बहुत ज्यादा झुकी हुई है.नज़र लगभग नहीं के बराबर.एक थैला लटकाए.दूजे बूढ़ों की तरह.
पिताजी को आकाशवाणी दिखाई.साथियों से मिलाया.लगा एक बड़ी इच्छा पूरी हो गयी. मेरी भी और पिताजी की भी......आज तक पिताजी जी ने मुझे रेडियों पर नहीं सुना.अपने ज़माने के मितव्ययी पिताजी हमेशा यही पूछते यहाँ कितना पैसा मिलता है रोज का. उनका ये अंदाज़ बहुत से पिताजी जैसी उम्र के लोगों से शर्तिया मिलता होगा....मेरे कई अनुज साथी आज उनसे लापालिप मिले.बहुत सी बातें की.सीमा और कोमल जोशी तो टूट पड़ी.वे उनमें अपने दादाजी की उम्र ढूंढ रही थी.मैं पिताजी की तीसरी पत्नी से हुआ हूँ. पहली वाली पत्निया और उनके बच्चे कोई नहीं बचा.सब गुज़र गए.वाकई वे दादाजी के उम्र के लगते हैं.आज अनुभव हुआ.
एक अनौपचारिक रिकोर्डिंग में पिताजी को मेवाड़ी में बोलते रिकोर्ड करने का मन हमेशा से रहा.कोमल और प्रकाश कंडारा ने बातचीत भी की. मगर सेव करते हुए अचानक डिलीट हो गयी.मेरे पांच साल के रेडियो के अनुभव में पहली बार सही चीज़ जाने कैसे डिलीट हुई.साथियों के आग्रह पर बाद के दूजे इंटरव्यू में सीमा जोशी और सुनीता कंडारा ने बातें की.दस मिनट की इस बातचीत का अपना मूल्य मुझे भविष्य में पता लगेगा.ये बात मैं अच्छे से समझता हूँ.
कभी मैं उनकी अंगुली पकड़ बाज़ार घुमा करता रहा होउंगा.आज उन्हें सलीके से बाईक पर बिठाकर कर दुकानों दुकानों सामान खरीदते बाज़ार की टोह ली.एक टोर्च उनके गाँव वाले घर के हित खरीदी.जूते बहुत ढूँढने पर भी नाप के नहीं मिल सके.खेद.उनके सामने बीस रुपये के चने मैंने दुगुने भाव से क्या खरीद लिए.बाद के बहुत समय तक मुझे बाज़ार समझाते रहे.जब भी बाईक खड़ी करी ,टाला ठोकने की याद दिलाते रहे.पैसे गिनाते समय दो बार हाथ फेरते हुए चेक करने की याद दिलाते रहे.बाईक के साईलेंसर से जले उनके जूते को बहुत देर देखते/कोसते रहे.ये दिन पिताजी के साथ के रूप में निपटे बड़े काम की तरह याद रहेगा.
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