Loading...
30 जुलाई, 2012

30-07-2012

हड़माला(ठीकरिया)
स्कूली बच्चे किसी भी सरल विषय के पीरियड से ज्यादा पोषाहार की गाड़ी  का इंतज़ार करते हैं। जिसमें अक्सर दाल-बाटी, कढ़ी-चावल, लापसी आती है। कुछ दिन के अंतराल पर उन्हें वही गाड़ी बिस्किट, संतरे, नासपती, नुकती, केले, चीकू जैसी स्वादिष्ट चीजों की फेहरिस्त में से जाने क्या-क्या दे जाती है। मुझ अध्यापकजात से ज्यादा उनका दिल वो ड्राईवर अंकल बहला जाता है जो रोज टिफिन का बक्षा और सब्जी की केन लेकर आता है। उन्हें अखबारी खबरों से ज्यादा उनमें छपी फोटो आकर्षित करती हैं। अखबारों में निकले पेम्पलेट मुझे ऐसे लाकर थमाते हैं जैसे कोई वसीयत का कागज़ इधर उधर गिर पड़ा हो। बहुत भोलापन और विश्वास बसता उनमें। वे इतने बेफिक्र जेते हैं कि उन्हें हर साल कक्षा में आगे बढ़ जाने या पास होने का आनंद भी नहीं पता, गज़ब तो तब हो जाता है जब पांचवी तक के स्कूल में पांचवी पास करने के बाद भी यहीं पढ़ना चाहते हैं। 

इनका मालिक भगवान् है तीज-त्योंहार और वरत-पूजा में इनते फंसे हुए प्रतीत होते हैं कि माताजी, बावजी, भूत, डाकन, टोना-टोटका, रतजगा, पाती, और भभूत-डोरा जैसी शब्दावली से रोज पाला पड़ता है उनका। उन्हें उनकी बदहाली का भान तक नहीं है। अपनी तबियत से अनजान मस्तमौला ज़िंदगी जीते हैं। बीस के झुण्ड में कोई  एकाध दांत मांझ कर स्कूल आता है। स्कूली पोशाक झंडे (पंद्रह अगस्त ) से पहले नहीं सिलवाई जाने की परम्परा है यहाँ। इन्ही दोस्तों में कुछ तो कोपियाँ, पेंसिले, पट्टियां, कलमें आदि भी झंडे तक ही ला पाते हैं। इससे पहले के दिनों में मांग-तुंग के काम चल जाता है। ये उनकी मजबूरी भी है और अब तो आदत भी। इनकी होड़ कोई  क्या करेगा। फ़कीर की तरह जीवन जीते हैं। पढ़ा तो पढ़ लिया वरना बकरी चराने में ही दिन कट जाए तो भी ग़म नहीं। कोइ उनका क्या बिगाड़ेगा जिनके पास खोने को गिनती की बकरियां,  दो चार चुज्जे और अपने मुफलिसी के दिन काटते माँ-बाप हैं। एक अदद कुटिया है सभी के पास। 

हेमराज उर्फ़ ढिंका हमेशा शिकायतों से भरापूरा रहता है। ये पक्की बात है कि छोटी ममता और कंचन कुछ भी सिखने के मानस से स्कूल नहीं आती। अंजली,चम्पालाल और गौरी हमेशा अपने छुट भाई-बहिन को पोषाहार के चक्कर में स्कूल ले आते हैं। उनके नन्हे बस्ते में कुछ हो न हो, थाली/कटोरा/किसी बड़े टिफिन का एक पड़  या फिर एकाध प्लेट ज़रूर मिल जाती है। हमेशा ये बातें यहाँ के बच्चों में विविधताभरा आनंद भरती है, यही इनके असल पहचान भी। इस पथरीली ज़मीन पर हर रंग का पत्थर मिल जाएगा। इन्हीं पत्थरों में यहाँ हीरे तलाशने/निखारने हेतु मुझे यहाँ भेजा है। 

0 comments:

एक टिप्पणी भेजें

 
TOP