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मुठ्ठी से खिसकती हुयी
चांदनी रातें
और
आहिस्ता से
ख़त्म होते
रिझाने वाले
दिनों
के बीच
चट्टी अंगुली
कठ्ठे थामे
साथ है
हांफता हुआ
गाँव
ज़बान पर
चिपकी है
दूर के दोस्त की
सभी बातें
और
लपर-लपर बतियाता
शहर है साथ
इस भले वक़्त में
फिर भी
कुछ तो कमी हैं
(2)
बिना बोले
अपने किसे अज़ीज़ से
काटे हैं
बीते दिन
अफसोस
काम ना आ सका
नसीहत देने के
मुसीबत में
अपने किसे अज़ीज़ से
काटे हैं
बीते दिन
अफसोस
काम ना आ सका
नसीहत देने के
मुसीबत में
उसके साथ
न चल सका
न बन सका
सहारा
अफसोस
न चल सका
न बन सका
सहारा
अफसोस
(3)
छाती में
मूंग दलती
मुसीबतों के बीच
की पैदाईश है हमारी
खांसता हुआ
जीवन है हमारा
और यूँही बचे हुए में
बसर करने का आदी भी
'साधन' होने का
अभिनय मिला है हमें
चुनिन्दा लोगों के
सपने पूरने को इस बार
घटते जाते हैं
दिन-रात हमारे
उनकी इमारतों की
उंचाईयां बढ़ने के साथ साथ
कितना भी
पटका-पटकी कर लें
गरीब ही रहेंगे हम
और वो अमीर ही
जब भी हम मरेंगे
वे जियेंगे-बढ़ेंगे
फुलाकर सीना
तनकर चलेंगे
शहर की शानों-शौकत में
खलल डाले बगैर
बस्तियां दूर सजाई हैं हमारीतयशुदा योजना के मुताबिक़
पीछे धकेले गए हैं
हम कुचले गए हैं
दुष्ट इरादों के मद्देनज़र
सलटाए गए हैं
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