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(1)
परत दर परत
चेहरे पर चढ़ती हुयी
उदासियाँ
शक्ल बदलने में
मशगुल हैं
इस कदर
कि हमारी
अदाएं भी
अब
बदलने लगी हैं
खुद को
(2)
मुफलिसी में
जीवन
कटता है
इस कदर
नि:शब्द तपता है
पेट की आग सहित
उबलता है चुपचाप
क्रोध सा लावा
अन्दर ही अन्दर
किसी
सुषुप्त ज्वालामुखी सा
तन,बदन
कभी आलापता है
रोवणे राग
यूं
अंगोछे और पछेवड़ी में
लिपट कर
येन केन
साँसे जुगाड़ता है
मुफलिसी में
जीवन
(3)
अफसोस
परेशानियों,चिंताओं,उदासियों
सरीखी तमाम अवस्थाएं
इन दिनों
मेरे ही घर-आँगन का पता पूछ
मज़मा इधर ही
लगाने की ठान बैठी हैं
इनका आना
आठों दिशाओं से भी कम पड़ रहा है
धीर धरे बैठा हूँ
अब तक तो मैं भी
प्रतिरोध में
साहस संजोये हूँ
जाने कल क्या हो?
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