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02 जनवरी, 2014

02-01-2013


  • वर्द्धमान महावीर कोटा विश्व विद्यालय से एमए अंतिम वर्ष परीक्षाएँ पूरी। अल्पमत की सरकार को बहुमत हासिल होने सरीखी खुशी।दाखिले और फॉर्म आवेदन से लेकर परीक्षाएँ देते और अच्छे नोट्स को बेकार जिल्द में फटते हुए देख कई बार इस विश्व्विद्यालय के 'खुला' होने का आभास किया। अप्रैल के आखिरी हिस्से से फर्स्ट ग्रेड और जून नेट परीक्षा अभी से डरा रही हैं.हालाँकि तीस हजारी नौकरी हाथ में है मगर पैंतालीस पार करने के पहले कुछ छलाँगे लगाने के घरेलू आदेश है.सो परीक्षाओं से हाथापाई जारी है.पहले तो मार गरीबी थी तो एसटीसी और फिर पत्राचार की बीएड से काम चला लिया।अब वक़्त, मौके, संगत और मशवरेबाज़ दोस्त हैं.हिदायतों पर अचूक निशाने साधते दोस्त हैं कि छोड़ते नहीं।तमाम मसलों के बीच दिल कहता है बीच का ये अंतराल कुछ साहित्यिक/सिनेमाई/सामाजिक आयोजन के लिए कुचन्या करने को उकसाता है.इधर लम्बे अरसे से अटके काम मुझे टूंग रहे हैं.चारों तरफ से घिरे ठीक बीच में फँसे एक आदमी का चेहरा मुझसे मिलता है.साल बदल गया कुछ बुजुर्ग दोस्तों को फोन बाकी है.कुछ करीबियों के घर तिल्ली के लड्डू खाने और शुगर फ्री चाय पीने जाना बाकी कामों की फेहरिश्त में लिखा है जहां टिक करना शेष हैं.सर्दी की बड़ी हुयी छुट्टियों के बीच यहाँ बेटी पूछती है ये सर्दी ननिहाल कब जाएगी ? मेरा बर्थ डे कब आएगा ? क्या हाथी भी चाय पीने से ब्लेक हो गया ? आलिए में बैठे भगवान् को सर्दी क्यों नहीं लगती? मतलब प्रश्न सभी जगह मौजूद हैं और एक मेरी शक्ल है कि 'निरुत्तर आदमी' से बार-बार मिलती है.इधर गिरस्ती और चाकरी के अलावा भी परीक्षा सरीखा बहुत कुछ है. परीक्षा और आगामी परीक्षाओं की तारीखों के एलान के बीच सार्थक परिणाम देने का दबाव 

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