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05 नवंबर, 2014

05-11-2014

  • अरसे बाद इस बुढ़ाते वक़्त में कुछ प्रेरित करता हुआ सा लगा.युवाओं से मुखातिब होकर अपने मन की बात/विचार साझा करने का अपना आनंद है.चित्तौड़ में अज़ीम प्रेमजी फाउन्डेशन के जिला प्रतिनिधि मोहम्मद उमर और उनके साथी विनय कुमार से बीते महीनों से अच्छा दोस्ताना हुआ तो एक के बाद एक आयोजन बनते चले गए.इन दिनों चित्तौड़ में उनके अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय बेंगलुरु के चार विद्यार्थी आए हुए हैं जो दसेक दिनों से चित्तौड़ जिले के दूर-दराज के गांवों में जाकर यहाँ के शैक्षिक स्तर पर शोधपरक काम कर रहे हैं.इन चारों से कुछ दिन पहले की घंटे भर की मुलाक़ात और आज एक लम्बी मुलाक़ात हुयी.आकाशवाणी चित्तौड़ के लिए एक परिचर्चा की रिकोर्डिंग के दौरान सार्थक संवाद हुआ.जिनसे मिला उनमें माया नारायण मराठी है.मुम्बई का कल्चर उसके साथ है.हिंदी बहुत अच्छी बोलती है और कोर्पोरेट की नौकरी करने और उसे एक झटके में त्यागने का होसला है उसके पास.दल  में से सबसे ज्यादा तेज़-तर्रार लगी.दूसरे हैं सत्या सिंह जो आसाम के हैं केवल अंगरेजी ही धाराप्रवाह बोल पाते हैं.हिंदी उनके लिए असुविधा की चीज़ है मगर उन्होंने चित्तौड़ में हिंदी सीखी है.थोड़े शर्मीले हैं.अमिता निजाम त्रिवेंद्रम की रहने वाली हैं.केरलियन कल्चर से लबरेज.अंगरेजी में निष्णात मगर हिंदी भी काम चलाऊ उपयोग लेती है.मेहनती और गहरी समझ के साथ बात करती है.चौथी साथी नबील काज़मी हैं जो वैसे अजमेर की रहने वाली है मगर अरसे तक उत्तर प्रदेश में ही रही.हिंदी बहुत अच्छी बोलती है.इसके भी सारे कोंसेप्ट लगभग क्लियर हैं. ये चारों साथी बेंगलुरु के विश्वविद्यालय में शिक्षा में स्नातकोत्तर पढ़ रहे हैं.मध्यमवर्गीय परिवारों से हैं यहाँ तमाम तरीके से कम सुविधाओं के बीच सरकारी और गैर सरकारी स्कूलों के अनुभव ले रहे हैं.शहर की संस्कृति और इतिहास से परिचित हो रहे हैं.मेले और किले देख रहे हैं.लिखने-पढ़ने वालों से बतिया रहे हैं.पर्याप्त उत्साह देखा है मैंने इनमें.चित्तौड़ में हम साथियों की गतिविधियों से भी हमने इन्हें परिचित करवाया है.आजकल में इनकी इंटर्नशिप ख़त्म हो रही है.ये लोग आकाशवाणी चित्तौड़ का स्टूडियो,दुर्ग चित्तौड़ और सीतामाता अभ्यारण्य देख बहुत अभिभूत हुए हैं.युवा हैं.जोश है.कुछ सार्थक करना चाहते हैं.सकारात्मक रवैया है.खैर मुझे इन उर्जावान नए दोस्तों से मिलवाने का भाई मोहम्मद उमर और विनय कुमार को शुक्रिया जहां मैंने इन्हें अपनी कही और इन्होने मुझे अपनी कही.हमविचार लोग जब ज़मीन पर बैठ कहीं बतियाते हैं तो अच्छी योजनाएं बन निकलती हैं.भीतरी कमजोरी का गलन होता है और एक ताकत के साथ इंसान कुछ नया करने को सचेत होता है.
  • सन चौहत्तर में आयी श्याम बेनेगल के फिल्म 'अंकुर' दो दिन पहले फिर देखी.मुद्दा आधारित फिल्म है सब जानते हैं.पूरी फिल्म का हासिल आख़री दो दृश्य हैं.एक वो जिसमें अपने गूंगे पति को अकारण कौड़े मारे जाने पर शबाना आज़मी(लक्ष्मी) अपने मालिक को पहली मर्तबा कोसती हुयी गालियां देती है दूसरा दृश्य जिसमें एक छोटा बच्चा है जो अपने 'सेठ' के घर की खिड़की की तरफ एक पत्थर उछाल कर उसका कांच फोड़ता है.यह दो दृश्य एक सीमा के बाद असहनीय दर्द के प्रतिरोध स्वरुप निकली प्रतिक्रिया है.एक स्त्री के दृढ़ निश्चयी व्यक्तित्व के आगे हारता हुआ एक ज़मीदार.अपनी खोखली शान के बूते किए अश्लील काम पर भीतरी डर से लगातार मरता हुआ ज़मीदार.पश्चाताप में जलती हुई एक पत्नी.एक सहज और सरल पति.यहाँ जो मैं समझ पाया वो यह कि गलत को गलत कहने की ताकत का अंकुरण है.प्रतिरोध की संस्कृति का अंकुरण है.एक स्त्री के सामने अपनी गलती पर एक आदमी में पश्चाताप कर झुकने की आदत का अंकुरण है.
  • आयोजन दो तरह के होते हैं एक वो जिसमें खुद आयोजक खुद छिपे हुए रूप में अपनी महती इच्छाओं को पूरा करता है.खुद ही छाया रहता है.खुद ही पैसा फूंकता है.खुद ही निर्णय करता है.खुद ही हावी होने की कोशिश करता है.वहाँ सब पैसे की माया होती है.उसे पूरा करने में हम नासमझ साथ देते हैं और वो भी एक तमाशबीन की तरह.दूसरे आयोजन वे होते हैं जिनमें बड़ी पूंजी का उपयोग निषेध होता है.तामझाम की उलझाहट बेहद कम.दिखावा न के बराबर.सामलाती सोच.समझौते के गणित के बजाय विचार के तहत साझेदारी.कुल मिलाकर मामला 'नीयत' का ही है.चुनाव आपका है.
  • जीवन में दो तरह के लोग ज्यादा याद रहते हैं एक मुसीबत में साथ देने वाले और दूसरे मुसीबत जनने वाले.
  • हमारे देश के गाँव कुछ कहना चाहते हैं.आप पढेंगे? अगर हाँ तो हमारे वरिष्ठ साथी खेमराज चौधरी जी की फेसबुक प्रोफाइल से गुज़र के देखें.चित्तौड़ की भदेसर तहसील के एक गाँव में रहते हैं वहीं एक स्कूल चलाते हैं और भील सरीखे गरीब समुदाय की बालिकाओं को पढ़ाते हैं.देहात के इलाकों के सामाजिक और गैर-बराबरी के मुद्दों पर लगातार लड़ते रहे हैं.सालों से 'प्रयास' संस्था से जुड़े हैं एक संस्था 'लोक शिक्षण संस्थान' भी संचालित करते हैं.किसी ज़माने में प्रसिद्द हुए 'खाट आन्दोलन' के लिए भी खेमराज जी ने बहुत प्रभावी भूमिका निभाई है.पी यू सी एल जैसे संगठनों से आपका जुडाव रहा है.बड़े महानगरों के अपने मित्रों से एक बारगी उपयोग किये कपड़ों की खेप मंगवा कर उन्हें गरीब परिवारों में बाँटने के काम में भी आप एक मुहीम की तरह लगते हुए देखे गए हैं.उनकी इस संघर्षमयी यात्रा को सलामhttps://www.facebook.com/khemraj.choudhary.14
  • इस दौर का बहुप्रयुक्त वाक्य 'सेठं शरणं गच्छामी'.हम भी अगर किसी बड़े अफसर,नेता,कंपनी मालिक,फेक्टरी के सीईओ या किसी सेठ की पत्नी होते तो केवल 'इस तरह के लोगों की पत्नी' होने की योग्यता के कारण ही आज किसी मेहंदी, डांस, मेकअप, फेंसी ड्रेस, वन मिनट शो, गायन, वादन, डांडिया, गरबा प्रतियोगिता के निर्णायक या अतिथि-फतिती होते.

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