जन्म नवम्बर,1978 का रहा होगा. अच्छे से याद नहीं किसी को.सरकारी कागज़ात में 1जुलाई 1980 लिखा रखा है.अपनी कहानी कुछ इस तरह से रही कि गांव अरनोदा से साल 1995 में दसवीं क्लास के बाद बाहरवीं पास के शहर निम्बाहेडा़ से 1997 में पूरी की. पिताजी बहुत पहले से ही मेरी शादी करने की फ़िराक में थे,पर मेरी किस्मत ही कहीं ओर ले जाना चाहती थी शायद.तब से लेकर अभी तक दुल्हन तो देखता रहा,मगर शादी बहुत देर से हुई जो नन्दिनी से लिखी थी.घर 75 सालाना उम्र वाले पिताजी हैं,और 55 के आस पास माताजी हैं.दोनों बहुत सीधे सादे हैं.मां अनपढ़ और पापा हिसाब किताब कर लेते हैं बस.किराने की दुकान और उनकी सादगी ,दोनों गांव में लोकप्रिय है.छोटी बहिन है,वो भी शादीशुदा.
बाद में मैं चित्तौड़ गया,शुरुआत में मास्टर बनाने वाला एक डिप्लोमा 1999 में किया.कम खर्चे में जैसे तैसे काम चलाते रहे,मगर उन दिनों की बेचिन्ताभरी रातें और थोडी़ बहुत लडकीबाज़ी के दिन बहुत याद आते है.ऐसा नही,नम्बर लाने में अव्वल भी रहते थे हम लोग. बिना अनुशासन वाली कोलेज की जिन्दगी से अनछुए रहने के कारण दुनियादारी बहुत देर के बाद में समझ पाया था.एक डिप्लोमा के बाद एक प्राईवेट स्कूल में 900 रुपये महिने का गुरुजी बना,जो सफ़र 2002 तक चलता रहा.इसी दौरान ही सरकारी कोलेज से बी.ए. किया.इसी बीच स्पिक मैके से सम्पर्क में आया,साथ ही साथ कुछ सजग साथियों की संगत से साहित्य की गिनती सीख पाया.इतिहास में 2005 में एम.ए. किया,55 प्रतिशत के आस पास अटक जाने से पीएच.डी.,नेट,स्लेट के सपने खतम हो गये.
2006 में आकाशवाणी में नैमेत्तिक उद्घोषक की पार्ट टाईम जोब मिल गया,जो पैसा से ज्यादा काम करने के मंच का आकर्षण देता था.यहां मेरा जी भी लगा रहता था.2006 के जाते जाते शादी हो गयी.2007 के जाते जाते सरकारी नौकरी लग गयी. फ़िर क्या चाहिये ?.तब लगा कि जीवन की गाडी़ पटरी पर आई है.2009 के अगस्त महिने में बेटी अनुष्का हुई.जीवन बहुत सारी घुमावदार गलियों से होकर यहां तक आ पहुंचा,गलियों और मौड़ौं की कहानी फ़िर कभी
लगातार......................
माणिक भाई ,
जवाब देंहटाएंआपकी रंगधर्मिता की तारीफ करने का मन है कहानी आपकी ही नही,हर उस संवेदनशील व्यक्ति की है जिस सपने बुनने की आदत है और सच करने का हौसला भी। कभी शेष फिर...पर भी पधारो...कविता अपनी है पीडा सबकी।
डा.अजीत
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