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08 सितंबर, 2011

आओ किले उगाएं














खंडित महल नींदे-खोदे
इसबारी पहाड़ बोएं
बावडियों सहित मंदिर उगे
ऐसे शंकर बीज बोएं

अटूट मूर्तियाँ फलेफूले
यहीं बने स्तम्भ जीत के
हार के यहीं हों जौहर
गीत गाएं यहीं प्रीत के

गौरवगाथा फिर लिखती
शमशीरों सी कलमें बोएं
दुश्मनों को उपाड़ फैंकती
लो चाकू छूर्री धार लगाएं

गुम्बद,मीनारें अपने मन की
अपने मन से महल बनाएं
मकबरे,छतरियां सब बनेगी
बुर्ज़,सुरंगे और पोल बनाएं

सुनो तुम जयमल राठौड़ बनाओ
मैं फतेहसिंह सिसोदा गड़ता हूँ.
भूलेभटके चुके चन्दन
पहले पन्ना को भजता हूँ

रास्ते सपाट हों इसके
हो सबका आना जाना
अवारा पशुरहित बस्ती हो
तालाब अलग हो जनाना

माताएं फिर से जने यहाँ
कुम्भा,प्रताप और मोकल
सीना चौड़ाए हरियाली
बहे गंभीरी कलकल

दंतकथा रहित ज्ञान के
बने किला यूं जब दोबारा
सचाई आंकड़ों की इतराए
फिर जाने ये जग सारा

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