घंटों - घंटों रहा किले में किले बने कविताओं के तथ्यों की ठोकापीटी से छंद रचे कविताओं के दुपह...

आओ किले उगाएं
खंडित महल नींदे - खोदे इसबारी पहाड़ बोएं बावडियों सहित मंदिर उगे ऐसे शंकर बीज बोएं अटूट मूर्तियाँ फलेफ...

साफ़ हो गए सारे आँगन
चित्तौड़ का किला देखने के लिहाज़ से आई बाहरी टीम पर मेरी सध्य विचारित कविता -------------------------------------------------- कहाँ मिल...
कविता :-कुम्हलाती इमारतें
बदलाव उपजते,थाल खाते ज़माने में उन चेहराछिपाऊ लड़कियों की मानिंद अब पहचाने नहीं जाते हालात के हवाले छोड़े ये किले गिरते उठते जैसे-तैसे चलते ...
किले में कविता;-सच को अब सपाट लिखें
तुम अब नया विचार दो कि सच को अब हम सपाट लिखें धुंधला रहे इस वितान को यूं मिलके साफ़-साफ़ लिखें दूर-दूर महल खड़े हैं सारे ढेरों अवशेष पड़े ह...
किले में कविता;-मन की ठाने चार कबूतर
जाने अनजाने इतवार के इतवार किले में हो जाता मेरा पगफेरा शहर से कुछ ऊँचें पहाड़ पर हाँ वीरान महलों का लगा एक डेरा एकांत खोजते पाँव मेरे जा ल...

किले में कविता:-मस्टररोल की हाज़री
मस्टररोल की हाज़री मदन-मोहम्मद,घासी-गीता इसी भांत के कुछ मज़दूर विक्रम-बेताल से कन्धों पर बैठ चढ़े-उतारे गीली रस्सी,बां...
किले में कविता:-पूरब का अपना रूतबा था
भले कहानी लम्बी थी पर वो कहने को आतुर था और मैं सुनने को बेताब एक सुबह की संगत थी जब वो कहता रहा देर तलक और मैं सुनता रहा घंटों कि बड़े मा...
किले में कविता:-अब और हम छुपाएं क्या
महंगाई के ग्राफ में उलझा ये कमरा नहीं किराए का यूं ही बिखरी पड़ी रहती है पुस्तों की मेहनत खुले में आते ही नहीं कोई जौहरी इधर नासमझ को यह...

किले में कविता;-मावठ में मुलाक़ात
बादल बरसे पूरे मन से तो आज मिला आराम पान थूंकी दिवारें धूल गई संकड़ी गलियाँ चमक उठी कामनाएं पूर गई आज मिला आराम बहता पानी पोंछ गया घू-गंदी क...

किले में कविता:-बंटवारा
जी करता है आज बाँट लें किले की सारी दौलत कुछ तुम रख लो,कुछ मैं रख लूं ये हम सब की माया आदर तुम दे न पाओ शायद कुछ धन जुटा लो जल्दी कलियुग की ...
किले में कविता:-''तुम्हे घर का कहूं या मेहमान ''
घोड़े,ऊँट और हाथी नहीं रहे अब तोफें हो गई मौन है झर्झरपन पर रोज़ बिलखते उन महलों का मालिक कौन है कचोटता है मन आज कुछ ज्य़ादा ही देख नज़ारा...

किले में कविता:-अब अकुलाते है मुद्दे समाज के
किराए के मकान की लम्बी और चौड़ी छत उजाला पसरता है जहां किले की ओट से निकले सूरज के बूते खैरात में बंटे लड्डू सा एकदम मुफ्त लगत...

किले में कविता :-'जब ठिठुरा किला पूरी रात
न पूछा किसी ने बिछोने का न ओढ़ाने की सोची किसी ने आज जब ठिठुरा किला पूरा शहर में रातभर पिछले दिनों की मावठ का अस...
किले में कविता:'मैं अवेरता हूँ पत्थर'
खस्ताहाल महल देख तुम चकित न होना पलभर सारी यादें ताज़ा करते यहीं ठिकाने भामाशाह के आँख फाड़ फाड़ क्या हो देखते जो बिखरा है वही सचाई न...
किले में कविता: न होकम रहे न दाता
न होकम रहे न दाता अब रखवाला कौन बदल गया है बहुत कुछ इधर बरसों में आया झांकने आज मौसम तक रुख बदलता आकर यहाँ हवा भी ठहरती है थोड़ा दिनभर ...

किले में कविता:एक पुरानी बस्ती
एक पुरानी बस्ती भी है मेरे शहर के किले में लोग रहते है,मिलते है खाते है,कमाते हैं घरों में भरे हैं बूढ़े,ज़वान औए बच्चे चलती है ज्य़ाद...

किले में कविता:'कौन खबर ले किले की'
अतिथि को दिखाने के काम आता था किला हमारे शहर का विचार नकली था मगर बरसों बना रहा अटल पुरखों से हमारे घर में कभी कभार बन ...