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हमारे अरविंद जी को समर्पित कुछ पंक्तिया
(ये पंक्तिया हमारे आकाशवाणी चित्तौड़ के साथी अभियंता अरविंद जी सुखवाल के नहीं रहने पर मन के भाव हैं.)
रेडियो का एक आदमी जाता रहा बजता रहा मगर रेडियो लगातार कुछ धीमे गीतों के संग रुंआसा उदघोषक करता रहा घोषणाएँ बजता रहा रेडियो कम वोल्यूम पर कुछ धीमे ही पर चलता रहा ट्रासफार्मर अभियंता बेमन से बटन दबाता रहा उस रोज़ रेडियो का जाबांज एक मस्तमौला सा वो चल बसा अचानक फेडर,कोंसोल छोड़छाड़ यकायक पूरी सभा बहुत याद आते रहे अरविंद अपने फकीरी जीवन और कड़वी ज़बान सहित मेज पर कुर्सी खाली रही बैठक में रेडियो का साथी एक जो जाता रहा.
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