Loading...
30 दिसंबर, 2011

महल का विराना


महल का विराना

कुछ देर रतनसिंह महल के झरोखे में
बैठ आया सुकून के साथ
जी आया कुछ पल
भव्य लेकिन झर्झर इमारतें
तैरती रही आँखों में देर तलक
शाम की मध्यम होती रोशनी
और मेरी युवा आंखों में बसे
अनगिनत सालों से बुढ़ाए झरोखे
कहीं से तालाब दिखता था
तो कोई हरियाली दिखाता
कहीं से ढ़लान दिखता था
तो कोई पहुंचाता मेरी नजर
ऊंचे टीले की शिलाओं पर
देखे बारामदे में कुछ थके हारे मजदूर
दिन ढ़लने की खुशी साफ दिखती थी
उनकी चमक वाली आँखों में
देखा है वहीं
मजूरी पकने और चुल्हा जलने का आनंद
दिहाड़ी के बाद घर को जाते जाते
चुन रही थी सुखी लकडियाँ
कुछ एकदम घरेलू महिलाएं
विराने में जीवन देखा उस सांझ
देखी उबड़ खाबड़ पत्थरों से बनी
कुछ  मजबूत दिवारें
उग आई थी जहां बैले और घासफूस
घोखड़ों में बैठे उल्लू देखे मैंने
कमल खिलने वाले तालाबो में
था जमावड़ा अब नंगे पूंगे बच्चों का
आहाते के खम्बों की सीध से आती नजर
बगीचे में चरती भैसें
और पेड़ों पर उछलते लाल मुँही बन्दर
सरल और निर्भीक जीवन
महल में देखा पहली बार
अब राजा रहा न कोई वहाँ
भ्रष्टाचार में डूबा दरबान भी नहीं
यहीं बने है कुछ छिटपुट मंदिर
अपनी टूटफूट का दर्द समेटती मूर्तियों वाले
रूक रूक कर सांस लेते
डरावना समय शायद जाता रहा
भला सामंती दिवारें कब तक ऊंची रहती
गिरना तो था एक दिन
नियति को रोके कौन
कौन रोके चक्रवत चलता जीवन
अब बकरियां तक लांघती और उजाड़ती है
महल का बचाकुचा बगीचा
जो जानता है सच्चाई सबकुछ
तब से लेकर अब तक की
अलविदा कहती दिखी
दिनभर की धूप अब छतों के रास्ते
चुपचाप जा रही थी
किले के पीछे वाले दरवाजे से
गिलहरियाँ घरों की तरफ लौटती
दिखी और विचार और गहरे में
बैठते हुए महसूसे मैंने
दिन ढलने के साथ
एकाएक आई नजर
सफेद दिवारें
ओढ़े हुए थी जो काले,पीले,मटमैले नाम
बेतरतीब तीर के निशान और
दिल से लगते रेखाचित्र
बनाएं हैं हमारे ही दिशाहीन मित्रों ने शायद
समझ अपनी बपौती कर गए दिवारें गंदी
दे गए सबूत अपने बिगड़ैल होने का
भोर,दिन हो या सांझ
आदमी से ज्यादा सन्नाटा पसरता है वहाँ
आज भी समाया है डर
वहाँ आए मुशाफिरों में
निकल ना पड़े कोई तलवार फिर से
चल पड़े ना कोई तोफ फिर से
हो जाए ना कोई फरमान जारी
जो फाड़ दे कान के पर्दे
यूं बयाँ करता दिखा
महल का विराना
मैंने जितना समझा लिख डाला
बाकी बचा पढ़ लेना किसी
किसी किताब में
या आ जाना वक्त निकालकर
कभी महल के विराने में
ढूंढेंगे साथ मिलकर जीवन की
पड़ाव दर पड़ाव  बदलती परिभाषाएं

0 comments:

एक टिप्पणी भेजें

 
TOP