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20 मार्च, 2012

20-03-2012

आज सुबह नेहरू गार्डन की जातरा में किलकारते बच्चे,मोटी तोंद वाले युवाओं की दौड़,हाथ-पाँव पटकती/टहलती महिलाएं, झुला झूलती हुई आदिवासी कामगार तरुणियाँ,चाय की थड़ी को आज के दिन हित जमाता हुआ दुकानदार,यही नहीं और आखिर में कुछ बूढ़े प्राणायाम के नाम पर अपने कान नाक ऊंची-नीची करते दिखे.सूरज सुबह सात बजे ही आग उगलने लगा था मानो कल किसी बात पर झगड़े से उपजा गुस्सा मन में भरे ही आज उगा हो.

रास्ते में पड़ते जिला क्लब में टेनिस के दो चार बोलों पर लगातार दे शोट मारते बड़े घरों के सफेदपोश आदमी.और दो पिछड़े तबके के नौकर ज़मी गिरी हुई बोलों को लाते/वापसी में थमाते हुए दिखे.इसी रास्ते चौराहों पर कचरे के ढ़ेर जलाकर सब घरों में पेक हो गए लोगों की चतुराई साफ़ दिख रही थी.कई हमउम्र मूंह में नीम का दातुन घुसेड़े आते/जाते मिले.बगीचे की बेंचों पर पास के रेलवे टेशन से लौटे जात्री अखबार चाटते हुए उनमें आँखे गढ़ाए नज़र आए.लगभग सभी बिना नहाए.मगर शायद लोक लाज के भय से मूंह धोकर ही घर से निकल हुए.

अरे हाँ मेरे घर और बगीचे के बीच पड़ती मुख सड़क के किनारे होर्डिंग एकदम मूंह बिगाड़े शांत थे.उनकी दुकानदारी चलने में थोड़ा वक्त बाकी जो था.वैसे भी आज उनका ऑफ़ ही समझो.हमारे मेवाड़ में रंगतेरस/नावणी तेरस के नाम आज जिला कलेक्टर की तरफ से राजकीय अवकाश जो है.इस पूरी यात्रा में मैं भी अपने बेटी को झुलाने/घुमाने के बहाने बचपन के दिनों को थप्पी दे आया.फर्क खाली ये रहा कि हमारे बचपन वाले गाँव के सीन में नेहरू गार्डन नहीं था.

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