सुबह के स्कूल के बाद दोपहर मोलेला गुरु दिनेश चन्द्र कुम्हार के साथ आकाशवाणी परिसर में गुज़री.महाराणा प्रताप के जीवन का बखान करते पेनल हमारे परिसर में लगाते हुए ही उनके साथ ही रात के आठ भी बजे.इसी बीच एक दिन पहले हुए हमारे आकाशवाणी के ऑडिशन के परिणाम की सूचि भी चस्पा हुई.परिणाम साफ़ था.अब तक काम करते रहे अड़तालीस साथियों में से इकतालीस तो पास हो पाए.मतलब वे आगे की एक अप्रैल से काम कर सकेंगे.तीन असफल रहे,जिनमें कालू लाल सुथार,ममता खटवानी और कविता सेठिया.बाकी चार अनुपस्थित रहे जिन्हें स्वत: असफल करार दे दिया गया.उनमें संजू बालोत,प्रियंका शर्मा,जिप्सा खनुजा,ममता तिवारी,ज्योति तम्बोली शामिल थी.इस चयन बोर्ड में हमारे अधिकारी योगेश कानवा जी,चिमनाराम जी,जितेन्द्र सिंह कटारा जी के अलावा बाहरी जानकार के नाम पर डॉ. सत्यनारायण व्यास और डॉ. सुशीला लड्ढा आई थी.
ऑडिशन के नाम से हम पूरी छब्बीस मार्च डरे रहे.कई साथी असहज ही रहे. कई ने बहुत सहजता से ऑडिशन दिया.छब्बीस मार्च सुबह दस से शाम पांच तक ऑडिशन चलते रहे.रोल नंबर जारी किए गए.बाद में एक दोनों तरफ छपा पर्चा बांटा गया.हिंदी,राजस्थानी के दोहे-छंद,गणित के अंक,अंगरेजी की स्पेलिंग,उर्दू के लब्ज़,बाकी की खाली जगह में कम्पेयरिंग करने को सात-आठ विषय.पूरी तरह से पक्की परीक्षा.मैं तो खैर पांच साल से यहाँ हूँ. पंद्रह सालों से भी यहाँ काम करने वालों के मन में घिघ्घी बंद गयी.बच्चे बच्चों वाली महिला साथियो को पहले ऑडिशन कर उन्हें फ्री किया.बीच बीच में कई अरजेंट काम वाले साथी भी निबटे.कई ऑडिशन होते ही फुर्र्रर्र्र्रर्र्र........कई ऑडिशन के आधे दिन के बाद आए.सारे माहौल में सभी ने जमकर बातों के दौर चलाए.सास-ससुर से लेकर एक दिन पहले बीती गणगौर की बातें हो या कि अपने टाबर-टाबरी की.हालांकि माहौल सहज था.मगर परिणाम के बारे में सभी चिंतित.दीगर बात ये भी कि ये ऑडिशन पूरी देश में हो रहे थे.तो हम भी सहज थे.सबकुछ नियमों के तहत.इसी बहाने हम अपने उच्चारण को लेकर बहुत सतर्क नज़र आए.ये भी जान लिया कि जमे हुए लोग भी हट सकते हैं.एक से सौ तक की गिनती को हिन्दी में कैसे बोले,आज जान लेना ज़रूरी समझा.बोलने के पैसे लेने पर हमें अपने काम के प्रति और भी अपडेट और सतर्क होना चाहिए जैसे सच से हमारा फिर सामना हुआ
इसी दोपहर अपनी माटी के ई-विशेषांक 'चित्तौड़ दुर्ग के बहाने' हेतु डाईट में राजेन्द्र सिंघवी भैया से भी बहुत देर तक बातें हुई.घर-ज़मीन-प्लाट जैसे निजी विवरणों से लेकर ऑफिस की व्यस्तता सब पर बात हुई.बातें तब ख़तम हुई जब शाम साढ़े पांच बजे बाईजी चेनल गेट पर ताले ठोकती सुनी गयी.हमने सभी मुद्दों से गुजरते हुए एक आदमी के सामाजिक सरोकारों की ज़रूरत पर वाजिब कदम की बातें की.जीवन में लिबरल होने के फायदे गिनाए.हमारे आसपास का मुकाबला कैसे करें जैसे विषय पर मंथन किया.निंदा-प्रसंशा से लेकर साहित्य-समाज सब पहलू छू लिए.बस यही था सताईस मार्च होने का मायना हमारे लिए.
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें