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24 जून, 2012

क्षणिकाएं-1

प्यार
(1)
भरपूर मेहनत के बाद भी
वो 
खफा ही रही
आखिर तक
मनाने में लगे रहे जिसे

सुबह से शाम
आखिर बीत गयी खाली
आज की दुपहरी भी
इसी ख़याल में
कि मान जायेगी
बच्ची ही तो है 


(2)
देर तक दिलासा देकर
भला बैठूं कब तक
आसरे किसी के
मूंह किये डगर पर 
टिकाये नज़र मेरी
तुम्ही बताओ
कब तक ठहरूं


(3)
गुज़रता है वक़्त
तमाम आजकल 
जिसे सोचने में
दिल धड़कता है 
इधर देर तक
उसकी बेवफाई की
अफवाहें सुनकर


(4)
अच्छे दोस्तों की गिनती
एक पर आकर अटक जाती है
ये कमबख्त 'एक' भी ना
 
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