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15 जून, 2012

15-06-2012

आज चित्तौड़ मेरे लिए  जो कुछ है उसमें गंभीरी नदी सुखी हुयी उपलब्ध है अपने बचे हुए पानी को डाबरों में भरे हुए.जहां प्रतापगढ़ और पीपलखूंट  की आदिवासी मज़दूर जमात सवेरे नहाती-धोती है।अखबार सवेरे सात बजे आते ही आये दिन मरे हुए लोगों पर मुआवज़े के हित होते बंद और जाम  की कहानी सुनाता है।जिंक जैसे बड़े प्रतिष्ठान में एक आदमी के मरने पर परिवार को पंद्रह-बीस लाख तो मिल ही जाता है।आज के चित्तौड़ में कुम्भा नगर फाटक पर मज़दूरों का आलम देखें कि लोग सुबह सात बजे से ही नहा-धो हाथों में टिफिन लटकाए बीड़ियाँ  फूंकते नज़र आ जाते हैं।यहीं ओवर ब्रिज का बनना और आये दिन अखबारों में इसके चलते आगामी दौर में बंद होने वाली मूल कुम्भा नगर फाटक को लेकर खबरें छपती है।

शहर में एक बारिश हुयी नहीं कि आस पास के झरनों और पिकनिक स्पोट को यहाँ के अखबार छाप कर प्रकाश में ले आते हैं। आभार उनका . साहित्यिक आयोजन आज  भी अखबार में कम ही जगह पाते हैं कारण ये कि आयोजन ही नहीं हो पाते।संभावना,मीरा स्मृति संस्थान जैसी ही कुछ संस्थाएं ही यहाँ है जो कभी कभार कुछ बैठकें उपजाती हैं।कुछ और हैं जिसके नाम याद नहीं आ रहे .राजनैतिक परिदृश्य पर बात-विचार करने में मेरी रूचि नहीं है,माफ़ करें।बाकी दुर्ग चित्तौड़ पर मूत्रालय-शौचालय और कचरा पात्र की कमी बरकरार है.कभी लगता है मेरे इस चित्तौड़ में उन तमाम लोगों को भी थोड़ा सा बारीक प्रशिक्षण देने की ज़रूरत है जो बाहरी पर्यटक से मुखातिब होते हैं।मैंने अपने हाल के मुम्बई ,कर्नाटक ,शिरडी और औरंगाबाद के भ्रमण में वहाँ के मिलनसार लोगों को बहुत गहरें से मुझ पर अपना छोड़ते हुए देखा है।उनके ज़रिये ही वो शहर भी मुझे अच्छे लगे हैं।

मेरे चित्तौड़ में दो प्रमुख  स्टोल पर भी आज भी साहित्यिक पत्रिकाओं के नाम पर 'हंस' के अलावा कुछ भी नहीं मिलता ।वो भी गिनती की पांच प्रतियां।अगर आपके जाने तक बच जाए।बाकी यहाँ के लोग अपने घरों में पढ़ते हैं।दूजे शहरों के हालात मुझे नहीं मालुम,मगर मुझे फिर भी अपना चित्तौड़ आंशिक रूप से प्रगति करता हुवा दिखता है।यहाँ सामाजिक संस्थाएं बहुत हैं जो शिविरों में बंटी हुयी होकर भी जन हितार्थ कुछ करती ही है।खुशफहमी के लिए ये बात भी अच्छी है कि हमारे शहर में शिक्षण संस्थान बढ़ रहे हैं।पाठकीयता कितनी बढ़ी .राम जाने

आज भी चित्तौड़ में एक ही सरकारी वही आकाशवाणी का ऍफ़.एम्.रेडियो चैनल है।हाल में इसकी रेंज बढ़ी  है.नई नई आवाजों के साथ ये बराबर चह -चहाता है।एक बात और आखिर में कि  या तो हमारे शहर में एक भी युवा कवि/कहानीकार नहीं है या फिर मेरी नज़र कमजोर है जो मुझे चारों तरफ कुछ भी नहीं दिखता है।

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