बहुत सी रुचियों से लबरेज इंसान कभी अपनी ऊर्जा को बचाते हुए चुप नहीं बैठ सकता है। कविता करेगा, डायरी लिखेगा, कोई संस्मरण टाईप करेगा, आलेख पर हाथ साफ़ करेगा या फिर कुछ नहीं तो मित्रों के घरों से आई डाक में मिली किताबें टटोलेगा। कभी हाथों में चुनिन्दा पत्रिकाओं के टेग लगे पन्नों पर उसकी नज़रें गढ़ी होगी। तो कभी हाल की यात्राओं के छायाचित्रों में उसका मन रमा होगा, कुल मिलाकर आदमी फ्री नहीं है। उसकी ऊर्जा के बहा को कोई क्या रोकेगा। एक तरफ का बहाव रोकोगे तो दूजी तरफ बह निकलेगा।
कभी जानेमाने गीतकारों और गायकों की रचनाएं कानों को घेरे रहेगी, तो कभी बुजुर्ग और वरिष्ठ साथियों /जानकारों से बातों में फोन की व्यस्तता। ऐसा बहुरंगी सफ़र एक व्यस्त इंसान को बहुत से मंझर से पार कराता है गोया प्रकृति से यारी की फुरसत उपहारेगा या कि फिर उच्चारण दोष सुधारने के हित किसी अनुभवशील उदघोषक की संगत भेंट करेगा। ये वक़्त बहुरूचि संपन्न इंसान का हमेशा साथ निभाता है। समय की घड़ियाँ सहूलियत बक्षती है जिसमें आप घर-परिवार के साथ अपनी अभिरुचियों को पानी दे सींच सकते है।
इसी दुनिया में ऐसे दो पगे सजीव भी सांस ले रहे हैं जिनमें पढ़ने,लिखने,बोलने की तहज़ीब ढूंढ पाना बड़ा मुश्किलाना काम है। इसके उलट कुछ लोग उसी तंग ज़मीन पर ऐसी जाजम बिछाकर बैठे हैं कि पूरी आवभगत के साथ हमविचारों को बुलाते,सुनाते,सुनते और विमर्शों के उपयोगी दौर ईनाम में देते हैं। घर मंगाई लघु पत्रिका और ढंग के कविता संग्रह पढ़ने के ठीक बाद मित्रों के घर पहुँचाने को उतावले नज़र आते हैं, इस दायित्व को निबटाने में फक्र महसूसते हैं। शहर में कुछ लोग पैदाईशी श्रोता और दर्शक लगते हैं। कुछ जन्मजात कवि,शायर और समाजसेवी हैं। एक योजना के मुताबिक़ कुछ का पहनावा ही रोबदार रखा गया है। अफसोस कुछ हमेशा की तरह पिछड़ेपन की पहचान लिए मुफलिसी का चेहरा चिपकाए नज़र आते हैं।
कुछ कूप मंडूक और घरघूसे लोग, न पढ़ते हैं न पढ़ने की तरफ आँख उठा कर देखते हैं। कुछ किताबखोर, केवल किताबें जुटाने और उन्हें अलमारी में पंक्तिवार सजाने में ही पगलाए रहते हैं। अल्लाह करे कुछ ऐसे ही जमाखोरों को बुद्धि आये और उनका पुस्तकालय शहर के किसी युवा के हित मुश्किल समय में काम आये। मगर समय रहते काश ऐसा हो।इन्ही तमाम विचारों के इर्द-गिर्द शहर के विविध रूचि संपन्न लोग मेरी आंख के सामने चलती फिल्म का हिस्सा है। मैं अक्सर इस फिल्म के हिस्से टटोलता हूँ, संवाद बदलता हूँ, अभिनय की बारीकियां को करीब से देखता हूँ। सभी अभिनेता की कलाबाजी मेरी समालोचना का हिस्सा है। साफगोई से कहूं तो मैं भी दूध का धुला हुआ नहीं हूँ। इसी डायरी में मैं भी कही शामिल हूँ।
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें