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20 जुलाई, 2012

आपाधापी में राजेश खन्ना पर केन्द्रित कर बनाया एक प्रोग्राम


( पंजाबी में 'काके' शब्द से काका बने राजेश खन्ना हमें बहुत याद आयेंगे।उनका पूरा जीवन इस सिनेमा को बहुत से नायाब तोफे दे गया।आज राजेश खन्ना उर्फ़ जतिन खन्ना हमारे बीच नहीं रहे मगर उनकी फिल्मों से गुज़रते हुए उनका अदद चेहरा बहुत अपना सा लगता है। याद आता है 'आनंद क फिल्म का वो संवाद जिसमें जीवन का अनुभव बड़ी साफगोई से झलकता है कि  'बाबू मोशाय ,ज़िंदगी बड़ी होनी चाहिए लम्बी नहीं' प्रस्तुत है आकाशवाणी चित्तौड़ से अठ्ठारह जुलाई रात नौ बजे 'राजेश खन्ना पर केन्द्रित कार्यक्रम की एक रिकोर्डिंग श्रोताओं के हित में यहाँ प्रसारित हुए अपनी माटी की तरफ से राजेश बाबू को हमारी श्रृद्धांजली -सम्पादक  )


आलेख@माणिक 


माणिक,




इतिहास में स्नातकोत्तर.बाद के सालों में बी.एड./ वर्तमान में राजस्थान सरकार के पंचायतीराज विभाग में अध्यापक हैं.'अपनी माटी' वेबपत्रिका पूर्व सम्पादक है,साथ ही आकाशवाणी चित्तौड़ के ऍफ़.एम्. 'मीरा' चैनल के लिए पिछले पांच सालों से बतौर नैमित्तिक उदघोषक प्रसारित हो रहे हैं.उनकी कवितायेँ, डायरी, संस्मरण, आलेख ,बातचीत आदि उनके ब्लॉग 'माणिकनामा' पर पढ़ी जा सकती है.

मन बहलाने के लिए चित्तौड़ के युवा संस्कृतिकर्मी कह लो. सालों स्पिक मैके नामक सांकृतिक आन्दोलन की राजस्थान इकाई में प्रमुख दायित्व पर रहे.आजकल सभी दायित्वों से मुक्त पढ़ने-लिखने में लगे हैं. वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय, कोटा से हिन्दी में स्नातकोत्तर कर रहे हैं.किसी भी पत्र-पत्रिका में छपे नहीं है. अब तक कोई भी सम्मान. अवार्ड से नवाजे नहीं गए हैं. कुल मिलाकर मामूली आदमी है.
 
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