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26 अगस्त, 2012

26-08-2012


अतीत में लौटनेकी पगडंडीगाँव भीहो सकतेहैं। हरियालेखेतों कीजाजम परकही कहींछपे डिजाइनकी तरहगाँव। बरगदकी विशालजड़ों सेलटकते उन्मुक्तबच्चों मेंगाँव हुलसताहै। बातोंमें अक्सरपीछे छूटतेऔर यादोंके सफ़रपर दूरतक लेजाने केहिमायती गाँवका आभारीहूँ मैं।शहर जाबसे बेटोंके हिस्सेमें माँके उलाहनेऔर पिताका नि:शब्द चेहरेसे लगातारदेखना लिखाहैं गाँवमें। संकड़ेरास्ते। आगेजाकर बंदहोती गलियाँ।राह रोकतीएक जगहठहरी हुयीबेमालिक कीसी भैंसे।थक हारखेतों सेलौटते किसानपरिवार औररोटी कीतेज होतीआग सेतपते हुएपेट।पुरातन पहचान वाले चेहरों परलीपा आधुनिकअनजानापन खलताहै।ऊपर से  ग्लोबलाईजेशनका प्रत्येकअसर खुदमें समेटेऔर उसेपूरने कोपर्याप्त उतावलेगाँव। पहाड़के पीछेमूंह छीपाकर अपनारोना रोतेगाँव। कहींबाँध भरनेपर उबकतेपानी सेलबालब बहनिकली  नहर को निहारते गाँव। कहींफेक्टरियों की विकसित होती उम्रऔर उनकीज़बर सफलतापर अबोलेकी तरहदेर तकचुप्पी साधेगाँव। ग्रामीणोंकी खुसर-फुसर सहितहर तरहके गाँवमौजूद हैज़माने में।मुख्य बस्तीसे दूरकुछ अछूतघरों कीबस्तियों केजन्मदाता गाँव।डाबरे औरकिंचड़ सनेरास्तों कोसहते औरगूंगेपन  की हद तक जाते बेचारेगाँव।  

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