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04 अगस्त, 2012

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 गज़ब के बेफिक्र लोग है,यहाँ भी बेहिचक जिन्दगी जीते आदमियों की कहानी क्या बयान करूं.पिंकी को हाल मई महीने में दी पांचवीं पास की स्कूल टी.सी. वो बेफिक्री में टांड पर क्या रख भूली. गरमी की छूट्टियों में बकरियां खा गयी/ चुज्जे निगल गए या कि फिर चूहे क़तर गए.ऐसा भी कह दूं तो एतराज नहीं करें कि किसी ने पूड़की बना के तम्बाकू भर डाली हो.कुल जमा घूम गयी.ये स्वीकारने में उन्हें कोई ग़म नहीं.खैर अन्तोगत्वा उसके पिताश्री वेणीराम जी को जब कारीगरी से फुसरत मिली तब जाकर एक सरकारी स्टाम्प के बदले नकली(डुप्लीकेट) टी.सी.जारी हुई.पूरी पंद्रह दिन लेट स्कूल भर्ती होकर भी उसके वज़न में रत्ती और मासे का भी फरक नहीं.दिमाग में कोई जोर नहीं.आरामदायक जीवन यात्रा.

स्कूल की ड्राफ्ट आउट सूचि में पूरी छ: लड़कियां हैं.पांच भील और एक मात्र माली.सभी के पिताजी से बड़े बेफिक्र अभिभावक मैंने नहीं देखे..सभी मस्त.सभी अनजान.सभी स्कूल की तरफ भूल कर भी नहीं आते.जब कहो मेरे सरकारी कागजात के सफ़ेद जक कागज़ पर चुपचाप अंगूठा लगा देते हैं.सभी लाचार से दिखते हैं.हाँ अंगूठा लगाने सी दिलेरी उनमें पीढ़ियों से अटूट रूप से भरी है.

फुलवंती के पिताजी गाँव में महाराज कहे जाते हैं.आज ही झंडा उठाये इसी गाँव से चल पड़ी टोली के लीडर बनकर अरवाने पाँव ही रामदेवरा चल पड़े.महाराज जाने कब लौटेंगे इधर ड्राफ्ट आउट बच्चों की टोली का झंडा फुलवंती ने उठा रखा हो मानो ऐसा लगता है.इसी टोली में भगवान् बा भी खाद के कट्टे से बने थैले में एक जोड़ कपड़े डाल चल पड़े.वे उस प्रेमी भील के पिताजी हैं जो पिछले पूरे साल ड्राफ्ट आउट रही.साल के आखिर में उसकी माँ भी चल बसी.अब प्रेमी ही घर में रोटी-बाटी बनाती है.उस एकलौती बेटी को भी सरकार स्कूल में लाना चाहती है.

इधर पुष्पा,केसर,नारायण,सुनील,ढिंका उर्फ़ हेमराज,मुकेश सहित दो अनाम बच्चों के पिताजी मूल चंद भी इस टोली में शामिल हैं.इनकी बेफिक्री देखिएगा.भरापूरा परिवार छोड़ वे भी जातरा पर चल पड़े, वहाँ उन्हें दारु पीने से भगवान् रामदेवजी के अलावा कोई भी नहीं रोक सकता था. अजीब मस्ती है उनकी बातों और चुप रहने के अंदाज़ में.उनकी पूरी कहानी के लिए मैंने एक बड़ा स्लोट प्लान कर रखा है.एक सीमा भील के पिताजी भी रामदेवरा गए, जो समझदार हैं मगर अपनी टोली के बर्ताव से भला वे भी अलग कैसे जाएँ. सो उन्होंने भी बेटी को आगे नहीं पढ़ाया.

स्कूल के तीन बच्चें आधी छूट्टी के बाद ही बकरी चराने जाने के लिए बड़े अलहदा अंदाज़ में ऐसे अवकाश माँगते हैं जैसे ये उनका परम दायित्व हो और छूट्टी उनका परम अधिकार.सरल और चिंता विहीन जीवन सीखने/देखने और चखने का एकमात्र स्थान हो सकता है भील बस्ती

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