(साठ पार इंसान चश्में में )डॉ इंद्रप्रकाश श्रीमाली जी हैं जिनसे सालों बाद मिलना हुआ,बहुत सारी स्मृतियाँ सामने आ पड़ी ,जब हमने अपना पहला ऑडिशन दे कर आकाशवाणी चित्तौड़ में कदम रखा।जिनकी आवाज़ के भारीपन के हम कायल थे।'राजा' बेटा जैसे संबोधन आज भी कान में गूंजते हैं।गज़ब का आधिकारिक ज्ञान,मीडिया के साथ हिन्दी साहित्य पर पकड़।उदयपुर में हुए साहित्य अकादेमी के आयोजन में फिर मिल कर उर्जावान अनुभव कर रहा हूँ।ऐसे इंसानों की आवाज़ की संगत हमेशा करनी चाहिए।आकाशवाणी में और बगैर आकाशवाणी के भी।आई लव यूं इंद्र प्रकाश श्रीमाली जी
30-12-2012
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Diary,
Dr.Indra Prakash Shrimali
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