लोग कहते हैं,सारे दिन एक सरीखे कहाँ होते हैं। मैं भी यही समझा हूँ,एक दिन बजट आता। दूजे दिन पेट्रोल के भाव बढ़ते हैं।तीजे दिन सेलेरी आती है।चौथे दिन क़र्ज़ वाले देहरी पर।पांचवे दिन अखबारी विज्ञापन बाज़ार तक खींच ले जाते हैं।छ्टे दिन बीमे की क़िस्त भरनी होती है।सातवें दिन जागरण फेरी वाला हफ्ता वसूलने आता है।आठवें पर दोस्त आ घमकते हैं।नवे दिन जेब कट जाती है।दसवें दिन माँ का फोन गाँव बुलाता है।ग्यारहवे पर रिश्तेदारी में मोसर अटेंड करना पड़ता है।बाहरवें दिन ससुराल की खातेदारी का आनंद।तेहरवें दिन आउटिंग।चौदहवें दिन गृहस्थी पचड़े के नाम।पन्द्रहवें दिन ऑफिस की टेंशन का घर में घूस जाना।सोलहवें दिन भी ऐसा ही कुछ।फिर मेरा विश्वास पक्का हो गया कि सत्रहवें से लेकर तीस तक दिन वैसे ही अदल-बदल कर विविध होते होंगे।सच कहा है सब दिन होत न एक समाना।
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