- कई बार हम किसी आयोजन को लेकर कूद तो पड़ते हैं मगर बाद के समय में अपनों के साथ के अनुभव हमें गरम-नरम करते रहते हैं।फिलहाल प्रस्तावित बड़े आयोजन के पहले से एक आभासी 'थकान' ने घेर रख्खा है।जो हर आयोजक के पल्ली में आती है।
- चित्तौड़गढ़ की डॉ रेणु व्यास के शोध के पुस्तक रूप में दिल्ली से प्रकाशित होने पर बधाई। दिनकर पर केन्द्रित इस पुस्तक का विमोचन 'माटी के मीत-2' आयोजन में होगा।किसी की पहली किताब पर लेखक के अलावा उसके माता-पिता को सबसे ज्यादा खुशी होती है और वही पुस्तक दो साल के इंतज़ार के बाद छपे तो खुशी तीन गुनी हो जाती है
- जिन्हें सिंसियर श्रोता और दर्शक समझा वे तो आजकल श्राद की खीर खाने में उलझे हुए हैं।हमारा निशाना ज्यादा श्रोता के विवेक और प्राथमिकताओं की सूची पर है।
- आजकल देशभर के बहुत सारे आमंत्रण पत्र नज़रों से निकल रहे हैं तो बस यही कहूंगा कि साहित्यिक-सांस्कृतिक आयोजन और शादी-ब्याव की कंकूपत्री में फरक होता है।अरे मित्रो,कोई तो कौना खाली रख्खो।कभी तो सोचो कि आयोजन अतिथि-फतिती और अलाने-फलाने साहेब के बगैर भी संभव हो सकते हैं।
- हम पहली मर्तबा एक-एक श्रोता को ठोक बजाकर पूछ रहे हैं कि क्या आप आयोजन में आ रहे हैं? असल में कई तो सकपका रहे हैं कि इतनी मनुहार कभी नहीं हुयी या फिर इतना क्लियरकट मामला कभी नहीं रहा, इस तरह कुछ नए अनुभव हैं हमारे और श्रोताओं दोनों के लिए।शहर में अक्सर होते आयोजनों का यह प्रस्तुति धारा के विपरीत समझो तो भी गलत नहीं होगा।
- आजकल एक दिन छोड़ कर दूजे दिन मेरे फेस बुक सन्देश बॉक्स में अधनंगी लड़कियों के मित्रता प्रस्ताव आ ही जाते हैं.कहती है अपना नाम,पता,ई-मेल दीजिएगा।मित्रता करनी है.भाई हमें अपना पता मालुम होता तो हम यहाँ क्या करते? यहाँ भी बाज़ार आ गया है। कहाँ कहाँ भागे ?
- सिंसियर श्रोता और दर्शक ढूंढना भी एकदम टेड़ी खीर ही समझो,जो काश यह समझ पाते कि आमंत्रण में सबसे नीचे क्यों लिखा है कि 'अपने आगमन की पूर्व सहमति हमें ज़रूर दीजिएगा।' भाई नए चलन में वक़्त तो लगेगा।
- एक ताज़ा अनुभूति जब आपकी नियत में खोट ही नहीं हो तो आसपास के मित्र खुले मन से अनुदान देते हैं.(नोट-कोई भी आयोजन आर्थिक सहयोग के बगैर एकदम अधूरा ही है )।
- मुझे भी उन सभी प्रिय दोस्तों की बहुत याद आती जिनसे में फोन पर बातचीत नहीं कर पाता हूँ।
- हो चुकी समस्त तैयारियों के बाद की 'तसल्ली' भोग रहा हूँ।
26 सितंबर, 2013
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