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04 दिसंबर, 2013

04-12-2013


  • पहले विज्ञान और बाद में राजनीति शास्त्र के विद्यार्थी रहे आशु कवि टाइप के युवा से अचानक हुयी मुलाक़ात में उनकी कविताएँ सुनने,अन्य कवियों को पढ़ने की मेरी सलाह पर उनके साफ़ मुकरने की अदा से झुँझला गया.वो आदमी भयंकर किस्म का आत्ममुग्ध था. अपनी ही प्रेम कविताओं को सार्थक,सही और अंतिम मानने/मनवाने पर उतारू।गज़ब का मुस्कराता हुआ और अड़ियल चेहरा था उसका।हिंदी बतौर विषय नहीं रहा सो तो कोई बात नहीं मगर वो किसी नामी अखबार के 'परिवारछाप' आठ पेज में टीम सदस्य रहने के अनुभव को ही सबसे बड़ी कसौटी मानकर गुप्प अँधेरे में मस्त है.कुछ कोशिशों और माथाफोड़ियों के बाद महाशय को उनके इस निराले एकान्त पर छोड़ आया।
  • कविता एक औज़ार और हथियार के माफिक होती है, उसे गुदगुदी चलाने का चुटकुला समझ कर कविताएँ लिखने वाले नहीं भी लिखेंगे तो भूकम्प नहीं आ जाएगा।कुछ न सही बहुतों का भला हो जाएगा,कम से कम कविता बदनाम नहीं होगी।
  • अपनों के घर जाने-आने में 'चाय-नास्ते' की चोंचलेबाजी कभी आड़े नहीं आती.वर्ना कुछ लोग तो घर के नए साजो सामान/खरीददारी/कप सेट/कपड़े-लत्थे/ससुराल-पीहर की रामायणे सुनाने हेतु अपनों को घर तक लाने के नुस्खे अपनाने में ही लगे रहते हैं.कुछ लोग तो घर बनवाने के बाद इस अवसाद में गिर जाते हैं कि फलाणे ने तो अभी तक उनका घर देखा ही नहीं है। ऐसे अलानों-फलानों में अपने दिखावे से दूर एक मित्र के घर सुकून से आधे घंटे की बातूनी शाम भी इधर दिल में देर से असर कर जाती है.
  • जीवन में भटकाव स्वाभाविक है मगर ढ़ंग की सलाहें/मित्र मंडली/गुरु/चेले-चपाटी से दिशा मिल जाने के बाद भी उन्हें अनसुना करके आदतवश उसी भटकाव वाले रास्ते पर चलने की अदा खुद के 'गेलसप्पे' होने के पर्याप्त सबूत छोड़ जाती है.

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