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29 जनवरी, 2014

29-01-2014

चित्रांकन-अमित कल्ला,जयपुर 
वक़्त की नजाकत देखते हुए खासकर शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में सेकण्ड जनरेशन को सुनना/देखना और पोषना बेहद ज़रूरी है.हालाँकि यह बात हर तरफ लागू होती है.वैसे लागू तो यह बात भी होती है कि सेकण्ड जेनेरेशन उतनी तपस्वी,सच्ची और ईमान के आसपास नहीं दिखती है.वैसे यहाँ मेरा जोर इसलिए दिख रहा है कि वक़्त के साथ घोर आर्थिक होते इस युग में हर व्यक्ति पूरी तरह से इन विधाओं में हाथ नहीं आजमाता है.उसे निश्चित परिणाम देने वाली डॉक्टरी,मैनेजरी या फिर अभियांत्रिकी जैसे पेशे चाहिए.

साहित्य की तरह यह भी एक रिस्की जोन है.सालों की रियाज़ के बाद भी कभी-कभी आदमी गच्चा खा जाता है.मुकाम नहीं मिल पाते.फस्ट्रेशन घेर लेता है.कभी-क आदतें भी आदमी को नीचले पायदान पर ला खड़ा कर देती हैं.घराने में पलने-बढ़ने वाले युवा कलाकार तो एक अलग अहमियत खुद ही पा जाते हैं इस तरह सेकण्ड जनरेशन के कुछ लोग तो तिर जाते हैं मगर पारिवारिक रूप से सांगीतिक माहौल का बेकग्राउंड नहीं होने के बावजूद अपना झंडा गाड़ने वाले हरी प्रसाद चौरसिया,रोनू मजुमदार कोई-क हो पाता है.मगर इस युग में योग्यता के लिए अभी कौने बाकी है जहां एक कलाविद अपने श्रोता और दर्शक पा सकता है.अपनी वीणा साध सकता है.बड़े नाम और इन कला विधाओं के दिग्गज बीते साल में बहुत तेजी से हमारे बीच नहीं रहे.वर्तमान परिदृश्य में सिर्फ यादें और उनकी रिकोर्डिंग ही बची रह गयी है.भला हो इस टेक्नोलॉजी का जो हम उन्हें बहुत हद तक जी सकते हैं.

तमाम विरोधाभासों के बाद भी हमें रूपक कुलकर्णी,प्रतीक चौधरी,सलिल भट्ट,दक्षिणा वैध्यनाथन,मोनिसा नायक,अनुष्का शंकर सरीखे कई-कई युवाओं को ठीक से समझना और गुनना होगा.यह युग हमें आव्हान करता है कि हम संजीव अभ्यंकर को जाने,उदय भवालकर को सुने.बहादुद्दीन डागर के ज़रिये ध्रुपद की उस विरासत का आस्वादन करने की तरफ बढ़े.विभिन्न शास्त्रीय विधाओं में वर्तमान के फलक पर ठीक-ठाक पहचान बना चुके ये चेहरे हमें बहुत कुछ कहना चाहते हैं.अपनी साधना के साथ ही अपनी प्रस्तुतियों के लिए मार्केटिंग का रवैया अख्तियार करना इनकी मजबूरी है और हमारे समाज के लिए यह एक तमाचा है.हमें असल की पहचान नहीं रही.समाज ने आगे की पीढ़ी तैयार करने के बारे में कुछ कम रुझान दिखाया है.संकेत निराशाजनक भी नहीं कहे जायेंगे.माहौल में आशाएं बाकी है.वक़्त-बेवक्त हमें भी हालातों का एक चिट्ठा तैयार करके अपनी प्राथमिकताओं में इन युवा साधकों की चर्चा करनी चाहिए.

अच्छी चीज़ों को नज़रअंदाज़ करने की हमारे आदतें जारी रही तो आप बताइए कि कौन कमाल साबरी,शाबीर खान और सरवर हुसैन बनाना चाहेंगे.कौन होगा यहाँ जो संजीव-अश्विनी शंकर शहनाई फूंकेंगे.क्या इस नए दौर में मंजरी असनारे केलकर,मीता पंडित और श्रुति सेडोलीकर में फरक करने की हमारी मेधा जाती रही.सोचने के कई बिंदु मन आ रहे हैं.बाकी फिर कभी (प्रतीक चौधरी का सितार वादन सुन रहा था तो उनकी सजीव प्रस्तुतियों सहित युवा कलाविदों के साथ के दिनों से बहुत कुछ याद आ गया )

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